जयपुर। हिंदू पचांग के अनुसार अमावस्या का दिन वो दिन होता है जिस दिन चंद्रमा को नहीं देखा जा सकता है। चंद्रमा 28 दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है और 15 दिन चंद्रमा पृथ्वी की दूसरी ओर होता है। इस कारण भारत वर्ष में चंद्रमा नहीं देखा जा सकता। जिस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से भारत वर्ष में नहीं देखा जा सकता उस दिन अमावस्या का दिन होता है या यू कहे की अमावस्या की रात को काली रात के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू शास्त्रों में अमावस्या को काफी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। इस दिन पित्र अर्थात गुजर गए पूर्वजों का दिन माना जाता है । वैसे तो श्राद्ध पक्ष में पितृ पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने आते है लेकिन अमावस्या के दिन भी पितृ अपने परिजनों से भोग प्राप्त करने के लिए पृथ्वी लोक पर आते है और भोग प्राप्त कर जातक को आशिर्वाद देते है। ऐसा करने से काल सर्प योग और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
अमावस्या को हिन्दू शास्त्रों में काफी महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है और इसके अनुसार अमावस्या को पित्रों अर्थार्थ गुज़र गए पूर्वजों का दिन भी मन जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन स्नान कर प्रभुः का ध्यान करना चाहिये, बुरे व्यसनों से दूर रहना चाहिए और हो सके तो गरीब, बेसहारा और जरूतमंद बुज़ुर्गों को भोजन करना चाहिये। जैसा की पहले बताया गया है अमावस्या को पित्रों का दिन कहा गया है तो इस दिन किसी को भोजन करने से हम एक तरह से अपने पित्रों को भोजन अर्पित कर रहे हैं। ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
अमावस्या का देवता पितृ देव को माना गया है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र समान अंशों पर और एक ही राशि में होते है। मान्यता है कि कृष्ण पक्ष में दैत्य और शुक्ल पक्ष में देव सक्रिय रहते है ।अमावस्या तिथि को पितरों को प्रसन्न करने के बाद देवताओं को प्रसन्न किया जाता है।
ऐसे लगाया जाता है पितृ को भोग
अमावस्या तिथि को स्नान आदि से पूर्ण होकर सफेद रंग के कपड़े पहने ।जिसके बाद सूर्य को जल अर्पित कर आदित्य ह्दय स्त्रोतम के पाठ करें । पितृ को सफेद रंग अधिक प्रिय होता है इसलिए उन्हे खीर का भोग लगाए। भोग लगाने से पहले दोनो तरफ डाब को तीर के निशान की तरह रखे । जिसके बाद खीरे पर तुलसी दल के साथ भोग अर्पण करें। अमावस्या पर पवित्रता का पूर्ण ध्यान रखें ।