जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में शनिवार को गीता जयंती के अवसर पर श्रीमद्भगवतगीता का शास्वत एंव समकालीन सन्देश के विभिन्न पहलुओं को लेकर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान में बड़ी संख्या में ख्यातिप्राप्त संस्कृतज्ञों,विचारकों एंव विद्वानों ने भाग लिया। इस अवसर पर मुख्य व्याख्यान जगद्गुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रामसेवक दुबे द्वारा मानसिक स्वास्थ्य,सद्भाव और श्रीमद्भगवद्गीता विषय पर दिया गया। प्रोफेसर दुबे ने गीता के अनेक उदाहरणों से सिद्ध किया कि गीता केवल संस्कृत जानने वाले पंडितों का ग्रंथ भर नही है, बल्कि आम जन मानस का ग्रंथ है। गीता अन्याय से न्याय के संघर्ष का ग्रंथ है।
जाने-माने विद्वान आचार्य दयानंद भार्गव ने गीता के चार महावाक्य विषय पर व्याख्यान दिया। प्रो भार्गव ने गीता की नवीन व्याख्या करते हुए गीता का सारांश अपने सीमित व्यक्तित्व का अतिक्रमण कर अपने असीमित स्वरुप को पहचानने में अन्तर्निहित बताया। कार्यक्रम में अतिथि के रूप में भाग लेते हुए जयपुर सांसद रामचरण बोहरा ने भारतीय संस्कृति-राजनीति में गीता के महत्व को रेखांकित करते हुए विकसित भारत के लक्ष्य में गीता की भूमिका पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर अल्पना कटेजा ने निष्कामकर्म योग और निर्लिप्तता की नवीन व्याख्या करते हुए। डिटैचमेंट को शत प्रतिशत अटैचमेंट के रूप में चिन्हित किया। प्रोफेसर कटेजा ने गीता के कर्मयोग और व्यवहारिक जीवन में इसके महत्व पर प्रकाश डाला। अवकाश प्राप्त आई पीएस डॉ सी बी शर्मा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रहे। व्याख्यान कार्यक्रम के संयोजक दर्शन विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद विक्रम सिंह रहे।