जयपुर। आत्मा का कारक सूर्य भगवान शनिवार को तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश कर गए। इसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। सूर्य 15 दिसंबर तक इस राशि में रहेंगे। इस दौरान सूर्य दो बार नक्षत्र परिवर्तन भी करेंगे। सबसे पहले 19 नवंबर को सूर्य अनुराधा नक्षत्र में गोचर करेंगे, फिर 2 दिसंबर को ज्येष्ठा नक्षत्र में गोचर करेंगे। वृश्चिक संक्रांति बेहद खास मानी गई है।
वृश्चिक संक्रांति पर परिघ योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का संयोग रहा। साथ ही बेहद खास शिववास योग भी बना। ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि ज्योतिष में सूर्य ग्रह का विशेष रूप से महत्व है। सूर्य ग्रह किसी भी राशि में लगभग 30 दिनों तक विराजमान रहते है। जिस दिन सूर्य देव राशि परिवर्तन करते हैं, उस दिन संक्रांति मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग संक्रांति तिथि पर सूर्य देव की पूजा करते हैं, उन्हें समाज में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। व्यक्ति की किस्मत भी अच्छी रहती है और हर काम में सफलता प्राप्त होती है।
दान-पुण्य से होगी भगवान भास्कर की कृपा:
एक माह तक रहने वाली वृश्चिक संक्रांति में उबटन करके स्नान करना बहुत लाभकारी माना जाता है। इसे आत्म शुद्धि और पाप का नाश होता है। पुराने कपड़े, तिल, खिचड़ी, तेल और धन का दान करना बहुत अच्छा माना जाता है। तिल, तिल के लड्डू और तिल से बने अन्य उत्पादों का सेवन करने से आशाजनक परिणाम मिलते हैं। तिल को सूर्य देव की पूजा का हिस्सा माना जाता है और इसे समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
वृश्चिक संक्रांति विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा करने से शारीरिक और मानसिक समस्याएं दूर होती हैं। सूर्य मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को बुरे समय से छुटकारा मिलता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करने से आत्मविश्वास भी बढ़ता है।