जयपुर। रंग मंच के सतरंगी रंगों और कला एवं संस्कृति की सुगंध के सराबोर करने वाले 13वें जयरंगम की बुधवार को शुरुआत हुई। थ्री एम डॉट बैंड्स थिएटर फैमिली सोसाइटी, कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और जवाहर कला केंद्र, जयपुर, के संयुक्त तत्वावधान में महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। आईपीएस हेमंत शर्मा, एडिशनल कमीशन फूड सेफ्टी श्री पंकज कुमार ओझा, जेकेके की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा, थ्री एम डॉट बैंड्स थिएटर फैमिली सोसाइटी की ओर से वाई के नरुला और हेमा गेरा ने दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का विधिवत उद्घाटन किया।
सभी ने खुशबू ए राजस्थान और पिटारा प्रदर्शनी का अवलोकन किया। पहले दिन देशराज गुर्जर के निर्देशन में गोरधन के जूते नाटक का मंचन हुआ, साथ ही गजल सम्राट जगजीत सिंह पर आधारित फिल्म ‘कागज की कश्ती’ फिल्म की स्क्रीनिंग गयी, ब्रह्मानंद एस सिंह निर्देशित फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद निर्देशक दर्शकों से रूबरू हुए।
एग्जीबिशन में झलका जीवन
खुशबू ए राजस्थान का क्यूरेशन संजय कुमावत ने किया है। अलग-अलग फोटोग्राफर्स ने इस एग्जीबिशन को अपनी नजर से सजाया है। यहां भारत की संस्कृति, ऐतिहासिक समारक, प्रकृति के सौंदर्य को जाहिर करने वाली तस्वीरों को संजोया गया है। वहीं करन सिह गहलोत के क्यूरेशन में पिटारा एग्जीबिशन में जीवन के विभिन्न रंग देखने को मिले। गांवों और शहरों में जाकर वहां के जीवन को इस प्रदर्शनी में सजाया गया है। पुराने दौर की जिंदगी, नारी का शृंगार, जानवरों की अठखेलियां और मध्यमवर्गीय परिवार का जीवन इसमें देखने को मिला।
गोरधन के जूते ने जीता दिल…
बात करे नाटक की तो ‘गोरधन के जूते’ नाटक का नाम एक कौतूहल पैदा करता है, लेकिन नाटक की कहानी दर्शकों को हास्य-करुण रस, रिश्तों की मिठास और लोक जीवन की सरलता से साक्षात्कार करवाती है। नाटक का आधार दो दोस्तों केसर जमींदार और सरपंच बंसी के स्वर्गीय पिता द्वारा किया गया पोते-पोती के विवाह का वादा है। कहानी को मोड़ देने के लिए निर्देशक ने नायिका के बड़े पैर की बात को केन्द्र बनाया और दर्शाया कि विवाह के घर में कैसे छोटी-छोटी बातें मुश्किलें खड़ी कर देती है, समाज का रवैया राई का पहाड़ बनाता है, इसकी बलि चढ़ते हैं रिश्ते और प्रेम। ऐसी समस्याओं का एक ही समाधान नजर आता है, वो है आपसी समझदारी। नाटक एक शादी के चलचित्र की तरह है। इसके पात्र हर शादी के घर में आपको दिख जाएंगे। लोक गीत, बोली, पहनावे और प्रोप्स को इतनी सादगी से नाटक में उपयोग लिया गया है कि दर्शक नाटक को देखते नहीं जीने लगते हैं।
रंगायन अब सभागार नहीं शादी का घर बन चुका है। बंसी के घर में मथरा की शादी की तैयारियां चल रही है। महिलाएं मंगल गीत गा रही है। इसी बीच दीपू का पिता केसर मथरा के पैर की नाप लेने आता है। मथरा जो पैर का पंजा बड़ा होने के कारण अब तक अपने पिता की जूतियों को पीछे से मोड़कर पहना करती थी, उसके नाप की चप्पल ढूंढना बंसी के लिए भारी पड़ जाता है। यह सरल सी बात मथरा के लिए समस्या बन जाती है। हीरामल महाराज की ज्योत करवाई जाती है। ‘बंसी तू छोरी का बड़ा पैरा न देख रियो छै, इका बड़ा-बड़ा सपना न देख सारी दिक्कत दूर हो जावे ली, ईश्वर एक बार जीन जसो बणा दिया वो बणा दिया।’
हीरामल महाराज की वाणी बड़ा संदेश देती है लेकिन लोक लाज की रस्सी बंसी और मथरा के गले में फंदे की तरह जकड़ती जाती है। बंसी का भांजा जो शहर से आता है वो दिल्ली से जॉर्डन के जूते लाकर मथरा को पहनाने का सुझाव देता है। विदेशी ब्रांड जॉर्डन गांव में गोरधन के नाम से मशहूर हो जाता है। बंसी और केसर दिल्ली जूते लेने के लिए जाते हैं। शहर में उनके बीच तकरार हो जाती है जिससे शादी रुक जाती है।
केसर के काका की सूझबूझ से बात बन जाती है। दीपू बारात लेकर आता है तो मथरा घर छोड़कर जाने लगती है। अंत में वह अपने पिता को बताती है, ‘मेरा नेशनल लेवल बास्केटबॉल टूर्नामेंट में सिलेक्शन हो गया है, मैं अभी शादी करना नहीं खेलना चाहती हूं, मैं जीतूंगी तो तुम्हारा नाम ही रोशन करुंगी।’ दीपू भी मथरा का साथ देता है और दोनों चले जाते है।
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो…
‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी’, ग़जल सम्राट जगजीत सिंह की रूहानी आवाज में जिसने भी इस ग़जल को सुना उसने असीम शांति का अनुभव किया। जयरंगम की पहली शाम जगजीत सिंह की याद में गुजरी। कृष्णायन में अभि और अभिन लाइव ने जगजीत सिंह की गजलों का गुलदस्ता सजाया। इसके बाद ‘कागज की कश्ती’ फिल्म की स्क्रीनिंग गयी जिसने जगजीत सिंह जी की यादों को जिंदा कर दिया।
फिल्म में जगजीत सिंह के स्वर्णिम और सुरीले सफर पर प्रकाश डाला गया है। हंसराज हंस, महेश भट्ट, जाकिर हुसैन, गुलजार साहब, वसीम बरेलवी सरीखे बड़े कलाकारों ने जगजीत सिंह से जुड़ी यादें और उनके अंदाज को अपने शब्दों में बयां करते दिखते है इसी के साथ उनके जीवन से जुड़े रोचक किस्से और दृश्य इसमें देखने को मिलते हैं। स्क्रीनिंग के बाद निर्देशक ब्रह्मानंद एस सिंह और फिल्म समीक्षक पवन झा दर्शकों से रूबरू हुए तो जगजीत सिंह को लोगों ने और भी करीब से जाना।