जयपुर। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 7वां राजरंगम् रंगमंच के रंगों से सराबोर करने के बाद विदा हुआ। अंतिम दिन ‘चित्रलेखा’ नाटक का मंचन किया गया जिसका निर्देशन व नाट्य रूपांतरण वरिष्ठ नाट्य निर्देशक धीरज भटनागर ने किया। पद्म भूषण अलंकृत साहित्यकार भगवती चरण वर्मा की कृति चित्रलेखा पर आधारित नाट्य प्रस्तुति में अभिनय, संगीत और नृत्य का समागम देखने को मिला जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली।
सभागार में प्रवेश करते ही दर्शक मंच पर मध्यकालीन भारत की छवि देखते हैं। महल और योगी की कुटिया को दर्शाने के लिए लकड़ी से सेट तैयार किया गया जिस पर बने चित्र दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। मंच पर अभिनेता आशुतोष राणा की आवाज में गूंजते शिव तांडव पर नृत्य के साथ नाटक की शुरुआत होती है जिसका भावानुवाद आलोक श्रीवास्तव ने किया है।
आचार्य रत्नांबर के दो शिष्य श्वेतांक और विशालदेव अपने गुरु से पाप और पुण्य में अंतर पूछते हैं, इस पर आचार्य उन्हें संसार से ही ज्ञानार्जन की शिक्षा देते हैं। दोनों अपने-अपने रास्ते पर निकलते हैं, श्वेतांक पाटलिपुत्र के सामंत बीजगुप्त और विशालदेव योगी कुमारगिरि के पास पहुंच जाता है। यहीं से दोनों की शिक्षा शुरू होती है। चित्रलेखा जो अपने नृत्य कौशल और सुंदरता के लिए पूरे पाटलिपुत्र में प्रसिद्ध है वह बीजगुप्त की प्रेयसी भी है।
चित्रलेखा ही इस नाटक का केन्द्र भी है। कुमारगिरि वैराग्य को श्रेष्ठ मानते हैं तो बीज गुप्त और चित्रलेखा के लिए भोग विलास ही सब कुछ है। अनायास कुमारगिरि और चित्रलेखा की मुलाकात होती है। चित्रलेखा के ज्ञान से कुमारगिरि प्रभावित होते हैं। चित्रलेखा कुमारगिरि से दीक्षा लेने वन में जाती है लेकिन परिस्थितिजन्य कारणों से दोनों फिर मुख्यधारा के जीवन में लौट आते हैं।
इधर बीजगुप्त सन्यास धारण कर लेते हैं। अंतत: चित्रलेखा और कुमारगिरि को आत्मज्ञान होता है और दोनों फिर विरक्त की ओर अग्रसर होते हैं। श्वेतांक और विशालदेव दोनों को ज्ञात होता है कि ज्ञान तर्क की नहीं अनुभव की वस्तु है और पाप दृष्टिकोण की विषमता है जिसकी परिभाषा संभव नहीं है।
इन्होंने निभाई विभिन्न जिम्मेदारियां
सरगम भटनागर ने चित्रलेखा, देवेश शर्मा ने बीजगुप्त, गिरिश मिश्रा ने कुमारगिरि, प्रेम चंद बाकोलिया ने श्वेतांक, कुणाल पुरसवानी ने विशाल देव , शुभम टांक ने रत्नांबर, पुरंजय सक्सैना ने चंद्र गुप्त, विनोद जोशी ने चाणक्य, मुकेश पारीक ने मुत्युंजय, अथर्व कुलश्रेष्ठ ने यशोधरा, मेघा गुप्ता ने सखी का किरदार निभाया। नेहा चतुर्वेदी और करुणा भटनागर ने वेशभूषा, धीरज भटनागर ने सेट, गगन मिश्रा ने प्रकाश संयोजन, दीपांशु शर्मा ने म्यूजिक संभाला। नितिन झांगिनिया ने संगीत संचालन, असलम पठान ने मेकअप किया। वहीं बैक स्टेज टीम में नेहा चतुर्वेदी, करुणा भटनागर, रयान चतुर्वेदी, सप्तक भटनागर, निधीश मित्तल, आरुष भटनागर, रचना भटनागर और नितिन भटनागर शामिल रहे।
राजरंगम् निर्देशक डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने कहा कि इस बार महोत्सव में रंगमंच के शैक्षणिक और व्यावसायिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया। प्रयास रहेगा कि महोत्सव के जरिए देशभर में शोध परक नाटकों का मंचन किया जाए जिससे रंगकर्मियों को मंच मिले और रंगकर्म के हर पहलु से कला प्रेमी रूबरू हो सके।
गौरतलब है कि पांच दिवसीय राजरंगम् के अंतर्गत चित्रलेखा समेत, कालपुरुष:क्रांतिकारी वीर सावरकर, एनिमी ऑफ द पीपल, चित्रांगदा व पीले स्कूटर वाला आदमी नाटक का मंचन किया गया। इसी के साथ राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत की कला, संस्कृति और आपदा प्रबंधन विषय पर चर्चा की गयी।