November 21, 2024, 6:48 pm
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भक्ति भाव से मनाई गई अक्षय तृतीया: चंदन से महके देवालय, दान-पुण्य पर रहा जोर

जयपुर। अक्षय तृतीया शुक्रवार को भक्तिभाव से मनाई गई। श्रद्धालुओं ने जमकर दान पुण्य किया। मंदिरों में जल से भरे मटके और बीजणी मुख्य रूप से दान की गई। मंदिरों में दिन भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। ठाकुरजी का चंदन से श्रृंगार कर शीतल व्यंजनों का भोग लगाया गया।

गोपीनाथ जी मंदिर – चांदपोल बाजार के कल्याण जी का रास्ता स्थित गोपीनाथ जी मंदिर के मातहत मंदिर कल्याण जी में अक्षय तृतीया पर ठाकुर जी के दशावतार विग्रह पर चंदन का लेप किया गया। खास बात यह है कि अक्षय तृतीया, जन्माष्टमी और मंदिर के पाटोत्सव पर दशावतार के दर्शन होते हैं। बाकी दिनों विग्रह को पोशाक धारण कराने से केवल कल्याण जी दर्शन होते हैं।


बद्रीनाथ जी मंदिर – चांदपोल बाजार के खजाने वालों का रास्ता स्थित बद्रीनाथजी मंदिर में ठाकुरजी का पंचामृत अभिषेक कर चंदन से लेपन किया गया। इसके बाद पीली जामा पोशाक धारण कराकर ऋतु पुष्पों से मनोरम श्रृंगार किया गया। आमतौर पर हनुमान जी के सिंदूरी चोला धारण कराया जाता है लेकिन अक्षय तृतीया पर अनेक मंदिरों में बजरंग बली को चंदन का चोला धारण कराया गया।


काले हनुमान जी मंदिर – इसी कड़ी में न्यू सांगानेर रोड मानसरोवर की प्रजापिता विहार कॉलोनी स्थित काले हनुमान मंदिर में हनुमान जी महाराज की पूरी प्रतिमा पर चंदन का लेप किया गया। महामंडलेश्वर मनोहरदास महाराज के सान्निध्य में अक्षय तृतीया का विशेष पूजन किया गया। चंदन की सुगंध से मंदिर सुवासित हो उठा। चंदन के लेप से लग रहा था मानो हनुमान जी महाराज को चंदन की पोशाक धारण कर रखी हो।

बद्रीनारायणजी मंदिर में भरा मेला:

आमेर रोड डूंगरी स्थित बद्रीनारायणजी मंदिर में अक्षय तृतीया को वार्षिक मेला भरा। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बद्रीनारायण भगवान के दर्शन किए। मंदिर से जोरासिंह गेट तक लगे लक्खी मेले में उमड़े श्रद्धालुओं ने भगवान को फल अर्पित किए और बीजणी से हवा की। इस मौके पर मंदिर में फूल बंगला झांकी सजाई गई। मंदिर महंत बचन दास ने भगवान बद्रीनाथ को दाल, ककड़ी और मि का भोग लगाया। मंदिर प्रबंधक अमर गुप्ता ने बताया कि दिनभर अनेक झांकियां सजाई गई। श्रद्धालुओं ने दिनभर विशेष झांकी के दर्शन किए। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान की काले रंग की पाषाण प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का निर्माण चार सौ साल पहले संत माधोदास वैरागी ने कराया था।

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