जयपुर। आश्विन पूर्णिमा गुरुवार को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई गई। गुरूवार को चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं के साथ निकला। लोगों ने खीर बनाकर देर रात तक चंद्रमा की शीतल किरणों के नीचे रखा। मंदिरों में चंद्रमा की शीतलता में भजन-कीर्तन किए। लोग देर रात तक घरों की छतों पर रहे। पार्कों में भी लोग समूह में बैठे।मंदिरों में ठाकुरजी का धवल श्रृंगार किया गया। ठाकुरजी को चांदी के पात्र में खीर का भोग लगाया जाएगा।
आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में शरद पूर्णिमा महोत्सव पर सुबह ठाकुर श्रीजी का पंचामृत अभिषेक कर सुनहरे गोटे की सफेद पार्चा जामा पोशाक धारण कराकर विशेष अलंकार श्रृंगार एवं मुकुट धारण कराया गया। संध्या झांकी बाद महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में शाम सवा सात से साढ़े सात बजे तक ठाकुर श्री जी की शरद उत्सव की विशेष झांकी सजाई गई।
ठाकुर श्रीजी को खीर और खीरसा का भोग लगाया गया। मंदिर के गर्भगृह में शरदोत्सव की विशेष खाट सजाई गई। खाट पर शतरंज, चौसर की बाजी सजाई गई। वहीं गाय, धूप दान, इत्र दान, पान दान से खाट को सुसज्जित किया गया। धार्मिक मान्यता है कि शरदोत्सव पर ठाकुरजी चौसर खेलते हैं और महारास लीला करते हैं। रास के पदों से ठाकुरजी को रिझाया
सरस निकुंज में मनाया शरद पूर्णिमा उत्सव
सुभाष चौक पानो का दरीबा स्थित शुक संप्रदाय की प्रधान पीठ श्री सरस निकुंज में पीठाधीश्वर अलबेली माधुरी शरण महाराज के सान्निध्य में शरदोत्सव मनाया गया। श्री सरस परिकर के प्रवक्ता प्रवीण बड़े भैया ने बताया कि ठाकुर जी को मध्यकालीन भक्ति आचार्यों के पदों का गायन कर रिझाया गया। इस मौके पर ठाकुरजी को सफेद पोशाक धारण कराकर धवल पुष्पों से श्रृंगारित किया गया। खीर का भोग लगाया गया। शाम से रात तक चंद्रमा की रोशनी में खीर रखकर ठाकुर जी को भोग लगाया गया।