जयपुर। होली के त्यौहार पर पहले टेसू के फूलों से हर्बल रंग और गुलाल बनाया जाता था लेकिन अब गुलाल और रंग में केमिकल मिलाकर तैयार किया जा रहा है। जो हमारी त्वचा के लिए काफी नुकसान दायक है। रंगों और गुलाल के माध्यम से ये केमिकल हमारे नाक,मुंह और स्किन के जरिए शरीर के अंदर पहुंच जाते है।
डॉक्टर महेश सिंह ने बताया कि होली के रंगों में कई चीजों की मिलावट होती है जो सीधे तौर पर नुकसान देह है जैसे रंगों में मिलने वाला पारा जिसे (मरकरी) के नाम से भी जाना जाता है। लेड धातु और क्रोमियम ये खतरनाम मेटल्स है जो श्वसन तंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते है। रंग –गुलाल में मिलने वाले ये तीनों ऐसे खतरनाम मेटल्स है जो फेफड़ो के मार्ग में जाकर फंस जाते है जिस वजर से आपकों ब्रोंकाइटिसअस्थमा और एलर्जी हो सकती है । ज्यादातर लोग होली खेलने के बाद जुकाम–खांसी के शिकार हो जाते है। होली के रंग में सीसा जैसी भारी धातुएं होती है जो खून में टॉक्सीनेशन का कारण बन सकती है।
बच्चों के लिए खतरनाक है क्रोमियम
वैसे तो मिलावटी रंग बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है रंग में मिलाए जाने वाला क्रोमियम काफी खतरनाक है इससे बच्चों में अस्थमा,एलर्जी की संभावना काफी ज्यादा होती है। इसी के साथ पारा (मरकरी) जो फेफड़ो के मार्गो से शरीर के अंदर जाकर किड़नी और भ्रूण के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। सिंथेटिक रंगो में जलन पैदा करने वाले तत्व होते है जो कि स्किन के लिए काफी नुकसानदेह है।
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
सबसे पहले तो ज्यादा रंगीन और चमकते हुए रंगों को खरीदने से बचे ,क्योकि इनमें ज्यादा केमिकल मिलाया जाता है।
होली खेलने के लिए हर्बल रंगों का चुनाव करें अगर कोई अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीज है तो नाम मात्र की होली खेले और मास्क का इस्तेमाल करें।
रंगों के कणों को मुंह और नाक से अंदर लेने से बचें।
होलिका दहन के दौरान घर के छोटे बच्चों को दूर रखें ।