जयपुर। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी 14 सितंबर को जलझूलनी एकादशी और डोल ग्यारह के रूप में मनाई जाएगी। मंदिरों से गाजेबाजे के साथ ठाकुरजी के डोल निकाले जाएंगे। शालिग्राम भगवान को जल स्त्रोत में विहार कराया जाएगा। ठिकाना मंदिर श्री गोविंद देवजी में जल झूलनी एकादशी झूलन महोत्सव के रूप में मनाई जाएगी। मंदिर के सेवाधिकारी मानस गोस्वामी ने बताया कि जलझूलनी एकादशी पर्व पर ठाकुर श्रीजी को लाल रंग का नटवर वेश एवं विशेष श्रृंगार धारण कराए जाएंगे। ग्वाल झांकी बाद 04:45 से 5:35 तक जलझूलनी पूजन होगा।
महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में ठाकुर श्री शालिग्रामजी (नारायण जी) को विशेष छोटी खाट पर विराजमान कर मंदिर के दक्षिण पश्चिमी चौक तुलसी मंच पर ले जाया जाएगा। यहां वेद मंत्रोच्चार के साथ पंचामृत अभिषेक कर चंदन श्रृंगार किया जाएगा। इसके बाद आरती की जाएगी। हरिनाम संकीर्तन की स्वर लहरियों के साथ तुलसी मंच की चार परिक्रमा कराकर पुन: ठाकु श्री शालिग्राम जी को खाट पर विराजमान किया जाएगा। मंदिर की एक परिक्रमा कराकर निज मंदिर में प्रवेश कराया जाएगा। शालिग्राम जी को ठाकुर श्रीजी के समीप विराजमान किया जाएगा। उसके बाद संध्या झांकी आरती दर्शन होंगे।
झांकियों के समय में आंशिक परिवर्तन:
जल झूलनी एकादशी पर गोविंद देवजी मंदिर की झांकियों के समय में आंशिक परिवर्तन रहेगा।
मंगला झांकी- सुबह 4:30 से 5:15 तक
धूप झांकी- सुबह 07:45 से 9.00 तक
श्रृंगार झांकी-9:30 से 10:15 तक
राजभोग झांकी-10:45 से 11:30 तक
ग्वाल झंाकी-04:00 से 04: 15 तक
जलझूलनी पूजन-04:45 से 5:35 तक
(ठाकुर श्रीजी के दर्शन पट बंद रहेंगे)
संध्या झांकी- शाम 05:45 से 06:45 तक
शयन झांकी-रात्रि 08.00 से 08: 30 तक
अगले दिन वामन जयंती:
अगले दिन भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष द्वादशी को वामन जयंती मनाई जाएगी। निज मंदिर में राजभोग झांकी पूर्व शालिग्राम जी (नारायण जी) का पंचामृत से अभिषेक किया जाएगा। इसके बाद राजभोग आरती के दर्शन होंगे।
रवि योग-उतरषाढ़ा नक्षत्र का संयोग
ज्योतिषाचार्य राजेंद्र शास्त्री ने बताया कि मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु पाताल लोक में चातुर्मास की योग निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी को जलझूलनी एकादशी और पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी तिथि का आरंभ 13 सितंबर शुक्रवार को रात्रि करीब साढ़े दस बजे होगा और और यह 14 सितंबर को रात करीब बारह बजे समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा। परिवर्तिनी एकादशी के दिन रवि योग और उत्तरषाढ़ा नक्षत्र का शुभ संयोग भी बना है।