जयपुर। मुस्लिम समुदाय में जून का महीना कुर्बानी का महीना माना जाता है। जिसे संपूर्ण भारत वर्ष में बकरीद के नाम से जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार बकरीद यानी ईद –उल –अजहा जिलहिज्जा के 12वें यानी आखिरी महीने का चांद दिखाई देने के 10वें दिन मनाई जाती है। जो इस बार 17 जून मनाई जाएगी। इस दिन बड़ी ईदगाह में सुबह पौने 7 बजे ईद की नमाज अदा की जाएगी। जिसके पश्चात मुस्लिम भाई एक –दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देंगे।
17 जून को बकरीद मनाने का ऐलान
राजस्थान समेत देश के अलग-अलग राज्यों में बकरीद का चांद दिखाई दे गया ळै। इसके अलावा जामा मस्जिद के पूर्व शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी 17 जून को बकरीद मनाने का ऐलान किया है।
इसलिए मनाया जाता ईद –उल –अजहा
ईद-उल-अज़हा पैगम्बर इब्राहिम का अल्लाह पर विश्वास की याद में ईद-उल-अज़हा मनाया जाता है। इस दिन अल्लाह ने इब्राहिम को अपने बेटे की कुर्बानी देने का आदेश दिया था। इब्राहिम ने अल्लाह की आज्ञा की पालना करते हुए बेटे की कुर्बानी दी और ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर किसी भी तरह की कोई चिंता दिखाई नहीं दी ।वो अपने बेटे की कुर्बानी देकर आगे बढ़ चला। कुर्बानी देकर अल्लाह बहुत खुश हुए । जिसके पश्चात उन्होने इब्राहिम को अपने जान से प्यारे बेटे की कुर्बानी से रोकते हुए एक भेड़ की कुर्बानी देने का आदेश दिया। जिसके बाद से ही ईद-उल-अज़हा पर अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का रिवाज बन गया। ऐसा माना जाता है कि इससे अल्लाह के प्रति और भी एतबार कायम होता है।
ईद –उल अज़हा कैसे मनाया जाता है
इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर नहाते है और नए कपड़े पहने है। जिसके बाद नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगार या मस्जिद में जाते है। नमाज के बाद भेड़ या बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है। जिसमें से एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों में दिया जाता है। दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को बांटा जाता है, और तीसरा भाग परिवार के लोगों के लिए रखा जाता है।
बेसब्री से होता है ईद का इंतजार
मुस्लिम समुदाय के लोगों को ईद-उल अजहा का बेसब्री से इंतजार होता है। इस दिन समुदाय के लोग सभी रिश्तेदारों से मिलने के बाद दावत रखते है ।जिसमें सभी एक साथ दस्तर खान पर बैठकर खाना खाते है और एक दूसरे को उपहार देते है। बच्चे नए कपड़े पहनकर (ईदी) जेब खर्ची लेते है।