जयपुर। गणगौर का पर्व 11 अप्रेल को होगा , जो पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। गणगौर का पर्व माता पार्वती को समर्पित है और इस पर्व पर माता पार्वती की पूजा की जाती है। गणगौर पर्व पर सुहागिन और कुंवारी कन्याएं माता पार्वती और शिव जी की पूजा करती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। गणगौर की पूजा चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन से शुरू होती है और ये पर्व करवा चौथ जैसे ही मान्यता रखता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है है कि गणगौर की पूजा करने से माता पार्वती और भगवान शिव सुखद दाम्पत्य जीवन जीने का वरदान देते है।
11 अप्रेल से मनाया जाने वाला गणगौर का पर्व कन्याएं और शादीशुदा महिलाएं मिट्टी के शिवजी और माता पार्वती बनाकर उनकी पूजा करती है। गणगौर समाप्ति पर माता पार्वती गौरा की झांकियां निकाली जाती है। जिसका भव्य आयोजन किया जाता है।
ऐसे होती है पूजा
16 दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठकर पार्क से दूब और फूल चुन कर लाती है। इस दूब से मिट्टी की बनी गणगौर माता को दूध से छीटें देती है। चैत्र शुक्ल की द्वितीया के दिन तालाब ,सरोवर पर जाकर गणगौर माता को पानी पिलाती है। जिसके बाद माता पार्वती का विसर्जन कर देती है। माना जाता है की जहां माता पार्वती की पूजा की जाती है वो जगह गणगौर का पीहर माना जाता है और विसर्जन वाली जगह को ससुराल माना जाता है।
गहनों के रूप में अर्पित किए जाते है मैदा के गुने
गणगौर का त्यौहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा से शुरू होता है 17 दिन तक मनाया जाता है और हर रोज भगवान शिव व माता पार्वती गौरा की मूर्ति बनाई जाती है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर व्रत ,पूजा करती है। ऐसा माना जाता है गणगौर के दिन माता पार्वती को जितने गुने अर्पित किए जाते है उतनी ही धन सम्पदा में बढ़ौती होती है।पूजन के बाद ये गुने सास ,ननद देवरानी यो जेठानी को वितरित किए जाते है।
ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती भगवान शि के साथ पृथ्वी पर सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए भ्रमण करती है। जो महिलाएं माता गौरा और शिव जी की पूजा करती हुई मिलती है उन्हे वो अखंड सौभाग्य का वारदान देती है।