October 20, 2024, 12:53 am
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एक उपहार अपनों को दीजिए जो बाजार में नहीं मिलेगा, वो है…प्यार!

जयपुर। नुपूर संस्था और थिएटर ग्रुप पैल दूज की ओर से बुधवार को जवाहर कला केन्द्र में नाटक ‘उपहार’ का मंचन किया गया। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक संदीप मदान की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में यह आयोजन हुआ। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की डायरेक्टर रहीं त्रिपुरारी शर्मा ने नाटक की कहानी लिखी है। अनुरंजन शर्मा ने नाटक का निर्देशन किया, गौरव कुमार और सुनील ने अभिनय किया। कल्पना मौर्य ने बैक स्टेज जिम्मेदारी संभाली।

नाटक के पात्र है तीन हमउम्र बच्चे और ये कहानी है उनके आपसी स्नेह की। 10 वर्षीय गौरव, अपने मित्र के साथ क्रिकेट खेल रहा है। गौरव के पापा ने उसे नया बैट दिलाया है इसलिए वो आज बहुत खुश है और हर बॉल पर चौक्के-छक्के लगा रहा है। पर थोड़ी देर बाद मित्र बॉलिंग कराते-कराते थक जाता है और गौरव से कहता है कि – मैं इतनी दूर-दूर बॉल पकड़ने नहीं भाग सकता, खेलना है तो गौरी को बुला ले (गौरी, गौरव की बहन है)।

गौरव और मित्र, गौरी को घर से बाहर बुलाने के कईं प्रयास करते हैं, पर गौरी खेलने नहीं आती। तब गौरव मित्र को बताता है कि गौरी नहीं आएगी। क्योंकि उसका मन ठीक नहीं है और वो उससे जल भी रही है। क्योंकि पापा ने उसे तो नया बैट दिला दिया पर गौरी को साइकिल नहीं दिलाई। अब दोनों दोस्त बुरा महसूस करने लगते हैं और गौरी को बहुत याद कर रहे हैं। तब मित्र गौरव को सुझाव देता है कि क्यों ना गौरी को एक अच्छा सा गिफ़्ट दिया जाए। गौरव को सुझाव अच्छा लगता है। वो गुल्लक से पैसे निकाल कर गौरी के लिए गिफ़्ट लेने बाज़ार की ओर चल देता है।

बाज़ार में गौरव को एक-के-बाद-एक बहुत से व्यापारी मिलते हैं जैसे – जलेबी वाला, कुल्फ़ी वाला, इत्र वाला, खिलौने वाला, निशाने वाला, चूड़ी वाला, कपड़े वाला। ये सब व्यापारी गौरव को उसकी बहन के लिए गुलाब का इत्र, सुंदर सी गुड़िया, लंबे बाल करने के लिए शैम्पू, चूड़ी और बिंदी, चाय बनाने का सेट, गुलाबी रंग के कपड़े जैसे उपहार दिखाते हैं। पर गौरव इनमें से कुछ भी नहीं खरीदता है। वो कहता है कि – गौरी को गुलाबी नहीं पसंद, उसे बाल छोटे रखने हैं, गुड़िया से वह खेल चुकी है, चाय बनाने से वो चिढ़ती है, उसे मेरे साथ खेलना है।

गौरव उपहार ढूंढते हुए बुरी तरह थक गया है। वो निराश हो कर घर लौट ही रहा होता है कि उसे एक किताब वाला मिलता है और वो उससे खाना बनाने की किताब ख़रीद लेता है। वो सोचने लगता है कि गौरी इसमें से क्या बनाएगी? तभी मित्र वापस आ जाता है और गौरव को सुझाव देता है कि क्यों ना हम ही गौरी के लिए कोई पकवान बनाएं, जिसे खा कर वो खुश हो जाए।

दोनों दोस्त पहली बार रसोई घर में घुसते हैं। और कुछ संघर्ष, थोड़ा परिश्रम और कठिनाईयों को पार कर आख़िरकार गौरी के लिए सूजी का हलवा बना लेते हैं। अंत में गौरव कहता है – देखना जल्दी ही गौरी खुश हो जाएगी और हम दोनों की ख़ूब जमेगी। वो दर्शकों के बीच से होता हुआ गौरी को हलवा देने चला जाता है।

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