- ब्रेन की शक्तियों को जगाने के लिए किए मंच पर तर्क
- युवाओं को चेताया, जीवन में लक्ष्य और अनुशासन निश्चित करें
- कहा झूठ और दिखावा ज्यादा, इसी से भटकाव
- बच्चों को फिल्म और मोबाइल पर कुछ भी करने की छूट से बिगड़ा जीवन
जयपुर। शहर में 11वीं बार परमालय जी के सान्निध्य में नए दृष्टिकोण वाले शिविर का आयोजन हुआ। यह शिविर सीकर रोड स्थित भवानी निकेतन परिसर में आयोजित किया गया। इस मौके पर 20 हजार से अधिक साधकों ने हिस्सा लिया। इसमें जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं पर सन टू ह्यूमन के प्रमुख परमालय ने अपना सामूहिक संबोधन दिया। युवा पीढ़ी को चेताया कि वे अपनी ऊर्जा को बरर्बाद ना करें। खानपान सुधारें और स्वयं से प्रेम करें जिससे विराट विजन बन सकें।
इस मौके पर साधकों को शरीर, मन और चेतना के नियमों से अपने जीवन को सुंदर बनाने के सूत्र और प्रयोग बताएं। उन्होंने बताया कि यदि नियम और अनुशासन से इनको अपनाया जाए तो इनसे जीवन में अमूल्य रूपांतरण आ सकता है। परमालयजी ने बताया कि आज झूठ और दिखावा ज्यादा, इसी से भटकाव पैदा होता है। बच्चों को खुली छूट से वे जीवन की दिशा तय नहीं कर पाते है। इसके परिणाम घातक सिद्ध हो रहे हैं। हमारी ताकत नहीं कि गलत काम करते हुए अपने बच्चे को मना कर सकें।
पैसा एक साधन है, साध्य तक पहुंचने के लिए लेकिन जीवन को महावीर, राम और कृष्ण की तरह बनाना है तो उनके जैसा बनना होगा। अनुशासन बनाना ही होगा। उन्होंने शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक ब्रेन की राइट ओर लेफ्ट शक्तियों को जागृत करने के सरल प्रयोगों को बताया।
परम आलयजी ने अपने जीवन से जुड़े हुए कई प्रश्न उठाए, जैसे मैं कौन हूं? इस पृथ्वी पर आने का लक्ष्य क्या है? अदृश्य जगत के साथ अपना एक तार जुड़ सके। उन्होंने बताया कि हमारा खुद का परिचय हमारे राइट ब्रेन के पास है।
ब्रेन की शक्तियों को जगाने के लिए अगला कदम सेजवानी, इंदौर से 45 किलोमीटर की दूरी पर जहां पर आवासीय शिविर का आयोजन होता है। साल में चार बार नवरात्र शिविर का आयोजन होता है। जयपुर के साधक मित्रों को भी आमंत्रित किया।
भ्रम ही आदमी के विकास को रोकता है
परमालय जी ने कहा, जन्म अकेले का होता है और विकसित भी खुद को ही करना पड़ता है न तो कोई समाज साथ देगा न ही परिवार और ना ही कोई समूह साथ देगा। अपने को ही खुद को विकसित करना होगा। पहले निर्भर फिर आत्मनिर्भर फिर परस्पर निर्भर की यात्रा होती है ब्रेन की।
मन को समझने पर कैपेसिटी कई गुना बढ़ जाती है, अभी हम समझने का प्रयास करते हैं बाहर देखकर लेकिन ज्ञानियों ने कहा की बेसिक से ही मन को पकड़ा जा सकता है, बीच में से मन को समझा नहीं जा सकता खुद के साथ ईमानदारी हो तो ही कर सकता है। विकास मन का मनुष्य कई बार खुद को धोखा दे देता है उसे नुकसान भी उसी का होता है। क्योंकि लक्ष्य की स्पष्टता नहीं होती अगर लक्ष्य स्पष्ट हो तो धारा नदी में परिवर्तित हो जाते है और नदी महानदी में परिवर्तित हो जाती है और महानदी सागर में परिवर्तित हो जाती है धारा को सागर में जोड़ना पड़ता है अगर लक्ष्य सागर का हो तो ही नदी मिलेगी।
परम आलयजी ने आगे कहा कि पृथ्वी भी एक साधन है व्यक्ति के विकास के लिए मन की गति बहुत आवश्यक है। गति फैलना है और अगति सिकुड़ना है जितनी गति बढ़ेगी उतना मन विकसित होगा।
इस मौक पर सांसद मनोज राजोरिया, पूर्व महापौर मोहनलाल गुप्ता, ज्योति खंडेलवाल सहित अनेक जन प्रतिनिधियों ने परमालयजी से आशीर्वाद लिया। इस मौके पर कमल सोगानी, संजय माहेश्वरी, राजेश नागपाल, नरेंद्र बैध, राजेश नागपाल ने सभी का मंच पर सम्मान किया।
अपने को बदलने से शुरुआत करना है
व्यक्ति किसी समाज का नहीं होता व्यक्ति किसी समूह का नहीं होता है व्यक्ति पूरे ब्रह्मांड का हिस्सा है। अपने को बदलने से शुरुआत करना है हमे, अगर स्पेस और टाइम को जोड़ेंगे तो जीवन का विकास आसान हो जाएगा। अच्छाई और बुराई दोनों का समाविष्ट उपयोग ही विकसित मनुष्य की पहचान है, हमारे शरीर में आधी अग्नि सूर्य की है और आधी अग्नि चंद्रमा की है जिससे शीतलता आती है। परम आलयजी ने बताया कि मनुष्य का जीवन मां के पेट से शुरू होता है, बच्चा जब पैदा होता है तो भूख लगती है और रोता है। और फिर उसे मां का दूध पिलाया जाता है जब बच्चे की लार का संबंध मां के दूध से होता है, तो वह भोजन सात्विक होता है उनमें बिल्कुल भी वासना नहीं होती। वहां दो परमात्मा मिलते हैं पेट को समझने के लिए शुरूआत वहीं से करनी होगी, प्यार को समझ कर भोजन को समझा जा सकता है।
हमें ऑक्सीजन भी सूर्य से ही मिलती है
हमारी मां तो हमें बचपन में ही दूध पिलाती है, जबकि पृथ्वी अपनी छाती फाड़कर पूरी जिंदगी अन्न देती है, हमारे मरते दम तक हमें पृथ्वी को नमन करना चाहिए। हमें ऑक्सीजन भी सूर्य से ही मिलती है, हम सभी धर्मों के लोग इसी पृथ्वी पर पैदा हुए हैं और इसी सूरज के सहारे से जिंदा है हमें मनन करना चाहिए। क्या हम सिर्फ ऑक्सीजन से जिंदा रह सकते हैं हमारे अंदर श्वास कौन खींच रहा है। हमारे शरीर में अभी अग्नि सूर्य की है और आधी अग्नि चंद्रमा की अच्छाई और बुराई दोनों का समाविष्ट उपयोग ही विकसित मनुष्य की पहचान है हमारे शरीर में अभी अग्नि सूर्य की है और आधी अग्नि चंद्रमा की है जिससे शीतलता आती है।
ऐसा होना चाहिए हमारा भोजन
भोजन के बारे में बताते हुए कहा कि सुबह सबसे पहले जो ब्रेकफास्ट करते हैं उसे ईमानदारी से करना सुबह आपका ब्रेकफास्ट हल्का एसिडिक ओर हल्का एल्कलाइन होना चाहिए। क्योंकि सुबह सूरज की किरणें बहुत तेज नहीं होती और दोपहर का भोजन स्ट्रांग एसिड और स्ट्रांग एल्कलाइन होना चाहिए। दोपहर में सूर्य की किरणें सबसे ज्यादा तेज होती है और वह स्ट्रांग एसिड और स्ट्रांग एल्कलाइन को पचा सकती है।
परम आलयजी ने बताया कि सूर्य हमारा परमपिता है और इसी से हम जीवित हैं। वही हमें ऑक्सीजन प्रदान करता है अगर वह नहीं हो तो हम भी नहीं रहेंगे। इसलिए हमें सुबह सूर्य से पहले जगना चाहिए यह अनुशासन पूर्वक करने से व्यक्ति अपने जीवन को विकसित कर सकता है। मिडिया प्रभारी राजेश नागपाल ने बताया कि आयोजन के तहत शनिवार को सभी ने महाभोज में भाग लिया।