जयपुर। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित वागेश्वरी महोत्सव का शनिवार को दूसरा दिन रहा। ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ नाटक में कला प्रेमियों को मशहूर अभिनेत्री इला अरुण, प्रसिद्ध अभिनेता के के रैना और विक्रांत मिश्रा के सशक्त अभिनय की प्रस्तुति देखने को मिली। चित्रकार शिविर में महिला कलाकारों ने कैनवास पर कल्पनाओं के रंग भरे। संवाद सत्र में विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए। कोमल पांडे की सुगम गायन प्रस्तुति में श्रोताओं को सुरीले नग़मे सुनने को मिले।
‘साथ—साथ चलते हैं संगीत और नाटक’
कृष्णायन में नाट्य कला और संगीत में अंतर्संबंध विषय पर संवाद प्रवाह का आयोजन किया गया। इसमें तमाशा शैली के प्रवर्तक वासुदेव भट्ट, वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव आचार्य, डॉ. अल्का राव और नरेन्द्र अरोड़ा ने विचार व्यक्त किए। वासुदेव भट्ट ने तमाशा, पारसी और संस्कृत नाट्य में संगीत के प्रयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संस्कृत नाट्य शैली में नांदी यानी मंगलाचरण से शुरुआत होती है जिसमें संगीतमय तरीके से ईश्वर से नाटक के सफल आयोजन की कामना की जाती है, समापन के समय भरत वाक्य से ईश्वर का धन्यवाद करने के साथ ही दर्शकों के लिए मंगल कामना की जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि संगीत और नाटक साथ—साथ चलते हैं। मंच पर अभिनय करते कलाकार अलग—अलग स्वरों में संवाद कहते है जैसे गुस्से को व्यक्त करने वाले संवादों में स्वर भिन्न होते हैं और निराशा में भिन्न।
यहां तक कि कलाकारों के मूवमेंट के समय भी संगीत का ध्यान रखा जाता है। जब कोई कलाकार तेज चलता है तो म्यूजिक की गति भी तेज होती है। राजीव आचार्य ने बताया कि नाटक को 5वां वेद कहा जाता है। इसकी रचना के समय ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस समाहित किए। उन्होंने यह भी बताया कि नाट्य शास्त्र में अवसर के अनुसार रागों, मुद्राओं का भी जिक्र है। राजीव आचार्य ने कहा कि अवस्था की अनुकृति ही नाटक है, जीवन में पग—पग पर संगीत है इसलिए नाटक और संगीत को अलग नहीं किया जा सकता है। डॉ. अल्का राव ने थिएटर से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। नरेन्द्र अरोड़ा ने सत्र का मॉडरेशन किया।
नाटक ने दर्शकों को हंसाया, बताया रिश्तों का महत्व
केन्द्र में गुलाबी सर्द शाम और कला प्रेमियों का स्वागत मनोरंजन से भरपूर और रिश्तों के महत्व को जाहिर करती नाट्य प्रस्तुति के साथ किया गया। कोरोना महामारी के दौरान उपजे हालातों को प्रतिबिंबित करने वाले नाटक ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ का मूल नाट्य लेखन इला अरुण ने किया जबकि निर्देशन के के रैना का रहा। ‘खुल जाता है हर सुबह यादों का बाजार, उसी रौनक में हम दिन काटा करते हैं’, यह संवाद पति के स्वर्गवास के बाद अकेलेपन का सामना कर रही संयोगिता के दर्द को बयां करते हैं। ‘मेरा छोटा बेटा सरहद पर लड़ रहा है, मैं यहां अकेलेपन से, बड़े बेटे का भरा पूरा परिवार है पर वो पास आता ही नहीं है, दुश्मनों से लड़ने में कभी डर नहीं लगा लेकिन अकेलापन बड़ा कचोटता है।’ रिटायर्ड कर्नल विक्रम सिंह बड़जात्या के ये संवाद रिश्तों में आई दूरियों से उपजी पीड़ा को व्यक्त करता है।
महामारी की पहली लहर के बाद गार्डन खुल गए पर सीनियर सिटीजन को एंट्री नहीं है। बागबान से बात कर विक्रम सिंह और संयोगिता गार्डन में एंट्री लेते हैं, यहीं से नाटक शुरू होता है। अकेलेपन का सामना कर रहे विक्रम सिंह और संयोगिता जब पार्क में एक दूसरे से मिलते हैं तो पहले दोनों में तकरार होती है। धीरे-धीरे वे दोनों एक-दूसरे के अकेलेपन को बांट लेते हैं और इनका एक और दोस्त बन जाता है बागबान। कलाकारों के बीच हुई नोंक-झोंक ने दर्शकों को खूब हंसाया। नाटक में कोरोना महामारी के बाद आए सामाजिक और तकनीकी परिवर्तनों को भी रेखांकित किया गया। विक्रांत मिश्रा ने बागबान का किरदार निभाया। सलीम अख्तर ने प्रकाश संयोजन,फ़िरोज़ मंसूरी ने मेकअप और संजय दास ने ध्वनि संयोजन संभाला।