जयपुर। दुनिया के सबसे बड़े साहित्यिक शो, सैमसंग गैलेक्सी टैब S9 सीरिज जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2024 की शुरुआत आज, 1 फरवरी को होटल क्लार्क्स आमेर, जयपुर में शानदार कार्यक्रम के साथ हुई| फेस्टिवल के पहले दिन की शुरुआत पंडित कुमार गंधर्व की जन्म शताब्दी पर सुरों के साथ उनको नमन करने से हुई| इस अवसर पर, प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका और कुमार गंधर्व की पुत्री, कलापनी कोमकली ने कुमार गंधर्व की कुछ कालजयी नज़में प्रस्तुत की| कुमार गंधर्व की रचना ‘उड़ जाएगा हंस अकेला’ वास्तव में इस क्षणभंगुर संसार का रहस्य खोल देती है| फिर नाथू लाल के नगाड़े की थाप और शंख की जोरदार ध्वनि ने घोषित कर दिया कि फेस्टिवल की इससे ज़्यादा ऊर्जावान शुरुआत हो ही नहीं सकती थी|
फेस्टिवल के प्रोडूसर और टीमवर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संजॉय के. रॉय ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत और अपने लक्ष्य को दोहराते हुए कहा, “वर्तमान समय में जहाँ भिन्न-भिन्न देशों और समाजों में ध्रुवीकरण ज़्यादा मुखर हो रहा है, ऐसे में साहित्य ही है जो लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है|”
उद्घाटन के अवसर पर उपस्थित राजस्थान की माननीय उप-मुख्यमंत्री, सुश्री दीया कुमारी ने कहा, “जयपुर और फेस्टिवल एक-दूसरे के पर्याय हैं| आपने इस फेस्टिवल के माध्यम से जयपुर को वर्ल्डमैप पर हाईलाइट कर दिया है| साहित्य आज के समय की मांग है| और इस फेस्टिवल ने सिर्फ साहित्य को ही नहीं, जयपुर के टूरिज्म को भी बहुत सपोर्ट किया है| आज लोग अपनी कांफ्रेंस और बिजनेस मीटिंग्स जयपुर में फेस्टिवल के अनुसार प्लान करते हैं, ताकि वो इसका अनुभव ले सकें|”
लेखिका और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की फाउंडर व को-डायरेक्टर, नमिता गोखले ने कहा, “हर साल मैं फेस्टिवल के लिए एक उपमा चुनती हूँ और इस बार मैं फिर से कथासरित्सागर पर लौटती हूँ… ये फेस्टिवल हमारी बदलती दुनिया को समझने का प्रयास है| हम विचार और संवाद का इंद्रधनुष पेश करेंगे|”
इतिहासकार, लेखक और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के फाउंडर व को-डायरेक्टर विलियम डेलरिम्पल ने कहा, “लिटरेचर फेस्टिवल एशिया महाद्वीप पर एक बड़े मूवमेंट के रूप में उभरे हैं, लेकिन इन सबकी शुरुआत यहां से हुई थी| हर साल की तरह इस साल भी हम आपके लिए दुनिया की श्रेष्ठ प्रतिभाओं को लेकर आये हैं|”
‘बाल ओ पर’ सत्र की शुरुआत में हरदिल अजीज़ शायर, गुलज़ार साहब ने अपने नये काव्य-संग्रह के बारे में कहा कि ये उनकी अप्रकाशित रचनाओं का संकलन है, और अभी भी उनकी इतनी सारी रचनाएं अप्रकाशित हैं कि उनसे इतनी ही बड़ी एक और किताब बन सकती है| सत्र में अनुवाद की कला, उसकी चुनौतियों और लेखक व अनुवादक के रिश्ते पर भी बात हुई| रख्शंदा जलील ने बताया कि इस किताब का अनुवाद तीन साल पहले शुरू हुआ था, वे लगभग हर दिन मिला करते और हर शब्द, लाइन और कोमा पर चर्चा करते| गुलज़ार साहब की कई अन्य रचनाओं का अनुवाद कर चुके पवन के. वर्मा ने बताया कि कविता का अनुवाद सबसे जटिल कार्यों में से एक है| उन्होंने कहा, “अनुवादक के तौर पर गुलज़ार साहब की कविताएं अनुवाद करना मेरे लिए बहुत सुखद रहा और कभी-कभी अनुवाद से पहले मैंने कई दिन और रात उसी कविता के साथ बिताए|”
गुलज़ार साहब ने अनुवाद पर कहा, “मानता हूं कि परफ्यूम की मात्र थोड़ी कम ज़रूर हो जाती है… लेकिन खुशबु कम नहीं होती|”
‘सोंग्स ऑफ़ मिलारेपा’ सत्र गुरु मिलारेपा को समर्पित रहा| सत्र में प्रसिद्ध अकादमिक और लेखक एंड्रू क्विंटमैन ने अभिनेता और लेखक केली दोरजी से संवाद किया| दोरजी ने कहा, “मिलारेपा अपने लोगों से गैर-पारम्परिक ढंग से बात करते थे| वो बिलकुल उनके अपने थे, शायद यही वजह है कि उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा है|” सत्र में मिलारेपा के कठिन जीवन की भी बात हुई और उन्होंने बताया कि वास्तव में मिलारेपा ने तंत्र-मंत्र अपने परिवार से बदला लेने के लिए सीखा था, लेकिन फिर उनका ह्रदय परिवर्तित हुआ और उन्होंने खुद को समाज के लिए समर्पित कर दिया| इस सत्र में नमिता गोखले की किताब ‘मिस्टिक एंड सेप्टिक्स’ के हिन्दी अनुवाद, ‘हिमालय एक खोज’ का लोकार्पण भी हुआ| इस किताब में गुरु मिलारेपा पर एंड्रू क्विंटमैन का लेख भी शामिल है|
सत्र ‘फिलोसफी, फेंटेसी एंड फ्रीडम’ में तमिल और मलयालम लेखक बी. जेयामोहन के विस्तृत और विविध लेखन पर चर्चा हुई| जेयामोहन ने कई तमिल फिल्मों की पटकथा लिखी है, जिनमें हाल ही में रिलीज हुई फिल्म, पोन्नी सेल्वन भी शामिल है| अपने लेखकीय सफ़र पर जेयामोहन ने कहा, “मैंने ये सोचकर लिखना नहीं शुरू किया था कि मुझे बड़ा लेखक बनना था| मैंने लिखना एक आध्यात्मिक अभ्यास के तौर शुरू किया था… जब मैं 24 साल का था, तो मेरे माता-पिता आत्महत्या कर ली थी, और उस सदमे से बाहर आने के लिए मैंने लिखना शुरू किया|” आगे उन्होंने कहा, “एक अच्छे लेखक के लिए उसका मूल और दर्शन बहुत ज़रूरी होते हैं|” सत्र में उनके साथ लेखिका और अनुवादक सुचित्रा रामचंद्रन और लेखिका अंजुम हसन भी उपस्थित थे|
‘ए बिगर पिक्चर’ सत्र में ऑस्ट्रेलिया के भूतपूर्व प्रधानमंत्री माल्कोल्म टर्नबुल और लेखक और भूतपूर्व राजनयिक नवदीप सूरी ने अपने कार्यकाल को याद किया| जब माल्कोल्म ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री थे, तब सूरी ऑस्ट्रेलिया में भारत के राजदूत थे| वर्तमान हालात पर बात करते हुए, माल्कोल्म ने कहा, “हमारा बड़ा खज़ाना ज़मीन के नीचे नहीं है, वो उसके ऊपर चल रहा है| इसीलिए हमें किसी भी तरह की ‘हेट स्पीच’ के लिए सजग रहना चाहिए| उसके लिए जीरो टोलरेंस होना चाहिए| उन लोगों के प्रति जीरो टोलरेंस होना चाहिए, जो किसी भी तरह के भेदभाव को बढ़ावा देते हैं|” उन्होंने अपने कार्यकाल में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों पर भी बात की| उन्होंने ‘बोलने की स्वतंत्रता’ और ‘मीडिया की अभिव्यक्ति’ में संतुलन होने पर बात की| उन्होंने कहा, “बोलने की आज़ादी होनी चाहिए, लेकिन सही इनफार्मेशन होना उससे भी ज़्यादा जरूरी है|”
2023 के बुकर प्राइज से सम्मानित लेखक पॉल लिंच ने बताया कि वह पहली बार भारत आने पर काफी रोमांचित हैं| भारत की बहुरंगी ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके सामने आयरलैंड में उनका होमटाउन लिमेरिक तो एक रंग का ही है| उनका उपन्यास, ‘प्रोफेट सोंग’ हाशिये पर खड़े समाज का एक उत्तेजक, प्रेरक और टकरावपूर्ण वर्णन है| एक महिला द्वारा अपने परिवार को बचाने की इस कहानी में आयरलैंड के पितृसत्तात्मक और तानाशाह समाज की झलक है| संवाद के दौरान उन्होंने अपने लेखकीय सफ़र और प्रेरणा की भी बात की| लिंच ने कहा, “मुझे एहसास हुआ कि कुछ और बेहतर मेरा इंतजार कर रहा है… और मुझे कुछ सहज ज्ञान हुआ… मैंने बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं, और फिर इंतजार करने लगा और फिर मैंने लिखना शुरू कर दिया… उस पल मुझे नहीं पता था कि किताब का स्वरुप क्या होगा, मुझे ये भी नहीं पता था कि ये पूरी भी होगी या नहीं… अगर मुझे पता होता तो शायद मैंने लिखना बंद कर दिया होता…”
पर्यावरण को समर्पित एक सत्र, ‘इंटरटाइडल’ में सभी वक्ताओं ने प्रकृति से जुड़े अपने अनुभवों पर बात की| लेखक और प्रकृतिवादी युवान आवेस की नई किताब, ‘इंटरटाइडल: ए कोस्ट एंड मार्श डायरी’, दो साल और तीन मानसून में फैली हुई, तट और आर्द्रभूमि, जलवायु और स्वयं की गहरी टिप्पणियों की एक डायरी है। आवेस ने अपने बचपन और मां को याद करते हुए बताया कि कैसे प्रकृति के साथ उनके अभिन्न संबंध थे। प्रकृति के साथ उनका रिश्ता कैसे विकसित हुआ, इसके बारे में सोचते हुए, युवान टिप्पणी करते हैं, “प्रकृति ही वह तरीका है जिससे मैंने दुखों को फिर से आकार दिया है… एक स्थान और उपस्थिति के संपर्क में रहना जो किसी के सिकुड़े हुए स्वार्थ से परे है जो किसी को पीड़ा पहुंचाता है और पीड़ा में बदल देता है।”
फेस्टिवल के पहले दिन एक सत्र ‘क्रिकेट: द स्प्रिट ऑफ़ द गेम’ क्रिकेट को समर्पित रहा| क्रिकेट सही मायनों में भारतियों का धर्म है| इस सत्र में लेखक, टिप्पणीकार, कोच और पूर्व क्रिकेटर, वेंकट सुंदरम की नई किताब, ‘इंडियन क्रिकेट: देन एंड नाउ’ के माध्यम से बीते सालों में खेल की भावना और अभ्यास में आये बदलाव पर चर्चा हुई| इंडिया के हरफनमौला बल्लेबाज रहे अजय जड़ेजा ने खेल के दिनों के कई मज़ेदार किस्से भी साझा किये| आज के माहौल पर उन्होंने कहा, “बदकिस्मती से हम अब गलतियों को बर्दाश्त नहीं करते, आप चाहते हैं कि आपके खिलाड़ी हमेशा अच्छा ही खेलें, इसीलिए उसी खिलाड़ी को एक समय में पांच कोच के निर्देश सुनने पड़ते हैं|”
‘लेसन इन कैमिस्ट्री’ सत्र की शुरुआत में अमेरिकी लेखिका और कॉपीराइटर, बोनी गार्मुस बताती हैं कि उन्हें अपनी किताब लिखने की प्रेरणा मेल-डोमिनेटेड वर्कप्लेस में एक बुरे दिन से मिली| लेखन पर गार्मुस कहती हैं, “मुझे लगता है कि लेखन सबसे मुश्किल काम है| खाली पन्ने को घूरने से बुरा कुछ नहीं है|” उनका उपन्यास, ‘लेसंस इन कैमिस्ट्री’ एक हताश कैमिस्ट के गिर्द घूमता है, जब वो अचानक खुद को एक कुकिंग शो में पाती है, जो 1960 के दशक के अमेरिका में क्रान्ति की चिंगारी लगा देता है|
‘ब्रेकिंग द मोल्ड’ सत्र में रघुराम राजन ने रोहित लाम्बा के साथ सह-लेखन में लिखी, ‘ब्रेकिंग द मोल्ड: रीइमेजनिंग द इकोनोमिक फ्यूचर’ पर बात की| सत्र में नौशाद ने उनसे पूछा कि ‘आप किन सांचों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं?’ इस पर राजन ने कहा, “सांचा एक मायने में विकास के वो तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल आज तक अधिकांश देश कर रहे हैं|” लाम्बा और राजन, दोनों ने जोर दिया कि भारत के विकास के लिए नये तरीके भी हैं, जैसे मानव-पूँजी में निवेश करके, उच्च-दक्षता सर्विस में विस्तार करके, और तकनीक से जुड़े नये उत्पादों के माध्यम से|
‘द ग्रेट एक्सपेरिमेंट’ सत्र में वक्ताओं ने भारत में लोकतांत्रिकता पर बात की| इसे ‘एक्सपेरिमेंट’ कहे जाने पर, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और लेखक एस.वाई. क़ुरैशी ने कहा, “जब हमने लोकतंत्र को चुना था, तो यह वास्तव में एक प्रयोग ही था| सबको लगा था कि यह गलत कदम साबित होगा, क्योंकि हमारी 70% से अधिक आबादी निरक्षर थी| ये सच में एक एक्सपेरिमेंट ही था|” सत्र में जोर दिया गया एक वोट या एक पल देश में राजनैतिक पॉवर को सुनिश्चित नहीं कर सकता, लेकिन लोकतंत्र लोगों को अपना मन बदलने का अवसर देता है| यस्चा ने कहा, “जब राजनेता कहते हैं की ‘मैं ही जनता का सच्चा प्रतिनिधि हूँ’ तो मेरे हिसाब से वे सिस्टम को धोखा दे रहे हैं|
आने वाले दिनों में, फेस्टिवल में और भी कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी, साथ ही म्यूजिक के भी कई शानदार सेशन देने को मिलेंगे|