जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में शुक्रवार को 13वें हेमलता प्रभु स्मृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सुहानी शाम में प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्मश्री शुभा मुद्गल की मधुर आवाज में सूफी और निर्गुण भक्ति परंपरा की प्रेम कविताओं से यह उत्सव सजा। जयपुर की पहली महिला नाट्य निर्देशक और कनोडिया महिला महाविद्यालय की सह-संस्थापक रहीं हेमलता प्रभु के 104वें जन्मदिवस के अवसर पर उनके मित्रजनों, परिवार, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल), राजस्थान बोध शिक्षा समिति और रोशानारा ट्रस्ट ने सुश्री प्रभु की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित कर उनके प्रेरक जीवन से जयपुरवासियों को रूबरू करवाया।
प्रभु की मातृत्व छांव में सीखे सफल जीवन के मंत्र: इंद्रजीत कुमार
कंचन माथुर द्वारा सभी के स्वागत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। उन्होंने हेमलता प्रभु के जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर पूर्व सिविल सेवा अधिकारी इंद्रजीत कुमार ने ‘मेरा कॉलेज और उसका मेरे जीवन पर प्रभाव’ विषय पर विचार रखे। इंद्रजीत कानोडिया कॉलेज से सन् 1982 में ग्रेजुएशन पूरी की थी। इस दौरान उन्हें हेमलता प्रभु का सानिध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने वक्तव्य में हेमलता प्रभु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कॉलेज में हेमलता मैडम के साथ बिताए दो साल के दौरान जो सीख मिली उसने जीवन को एक दिशा दी। वे बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं, सादगी की इस प्रतिमूर्ति ने कई जिंदगियों को नया आकार दिया। वे खुद को भूलकर बच्चों पर फोकस करती थीं।
कुछ सिखाते समय लहजे में सख्ती थी तो बच्चों के प्रति मातृत्व भाव भी था। केवल पढ़ाना ही नहीं बच्चों को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाना उनका लक्ष्य था। इसके लिए वे बच्चों से पढ़ाई के साथ-साथ रचनात्मक गतिविधियों यथा रंगमंच, कथक भी सीखने पर जोर देती थीं। इन्द्रजीत ने बताया कि प्रभु मैडम से कभी डर नहीं लगा वे प्यार से बच्चों को अनुशासन और पूछते रहने का महत्व बताती थी। इंद्रजीत ने एक किस्सा भी साझा किया। पिताजी की तबीयत खराब होने पर जब इंद्रजीत घर, अस्पताल और नाटक की रिहर्सल की जिम्मेदारी निभा रही थीं तो प्रभु मैडम खुद उनके लिए खाना बनाकर लाती थीं। ‘आज तक थके नहीं, क्योंकि किसी रेस में भागे नहीं, अपने लक्ष्य को याद रखा तो पाया कोई रेस थी ही नहीं।’ इंद्रजीत ने प्रभु मैडम से मिली सीख को उक्त कविता के जरिए जाहिर किया।
प्रेम से सराबोर गीतों से सजी शाम
इसके बाद शुरू हुई पद्मश्री शुभा मुद्गल की प्रस्तुति जिसका श्रोताओं को इंतजार था। आलम ए इश्क में सूफी और निर्गुण भक्ति की परंपराओं की प्रेम कविताओं की गूंज मध्यवर्ती में सुनाई दी। उन्होंने कबीर दास के पद से प्रस्तुति की शुरुआत की। ‘साहिब है रंगरेज, चुनरी मेरी रंगदारी’ गाकर उन्होंने गुरु की महिमा का बखान किया। इसके बाद उन्होंने संत मलूक दास जी की रचना ‘तेरा मैं दीदार दीवाना’ से ईश्वर का गुणगान किया। एक-एक कर उन्होंने विभिन्न संतों की रचनाएं गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रेम रसधार से सराबोर इस उत्सव में तबले पर अनीश प्रधान और हारमोनियम पर सुधीर नायक ने संगत की। पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने शिक्षा और कला जगत में हेमलता प्रभु के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी कलाकारों और कला अनुरागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।