जयपुर। ‘जवाहर कला केन्द्र मंदिर है, जय है’ सधे स्वरों में कलाकारों ने ध्रुवपद की यह रचना गाकर सभी श्रोताओं को केन्द्र के रंग में रंग दिया। मौका था केन्द्र की ओर से आयोजित ध्रुवपद गायन प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन समारोह का। गुरुवार शाम शिल्पग्राम के मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य के बीच डूंगरपुर हट के मंच पर यह प्रस्तुति दी गयी। यह विशेष रचना ध्रुवपद कार्यशाला की प्रशिक्षक रहीं प्रो. डॉ. मधु भट्ट द्वारा परिकल्पित राग ‘चारूधरा’ एवं गुरू पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग द्वारा रचित 6 मात्रा की नई ताल अद्धा चौताल में निबद्ध थी।
कार्यशाला में 115 प्रतिभागियों ने मधु भट्ट तैलंग से ध्रुवपद गायन का प्रशिक्षण हासिल किया। समापन समारोह में केन्द्र की अति. महानिदेशक प्रियंका जोधावत, अन्य प्रशासनिक अधिकारी व बड़ी संख्या में कला प्रेमी मौजूद रहे। सुश्री प्रियंका जोधावत ने कहा कि हर आयु वर्ग के प्रतिभागी कार्यशाला में पुरातन शास्त्रीय विधा से जुड़े। इनकी मनोरम प्रस्तुति से जाहिर होता है कि बड़ी गंभीरता से इन्होंने से गुरु से मिले सबक को आत्मसात किया है।
मधु भट्ट तैलंग ने बताया कि कार्यशाला में ध्रुवपद के सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक दोनों पक्षों का प्रशिक्षण दिया गया। सुर साधने के तरीके और रागों को आसान प्रयोगों के जरिए सिखाया गया। आदि राग भैरव का प्रकार ‘राग वैरागी भैरव’ एवं ‘आदि ताल’ में निबद्ध वैदिक गणपति स्तोत्र, 500 वर्षों पूर्व ध्रुवपद की जानकारी विद्वानों द्वारा दी गई।
अपनी प्रस्तुति में प्रतिभागियों ने ध्रुवपद की संस्कृत में व्याख्या का गान किया, अभ्यासगत रोचक रचनाओं, ध्रुवपद की प्रमुख तालों का हाथों से प्रदर्शन, राग मालकौंस में ध्रुवपद के नोमतोम के आलापों के विलंबित से द्रुत लय तक चारों चरण, राग मालकौंस में ध्रुवपद की दो रचनाएं पेश की। पखावज पर प्रतीश रावत, सारंगी पर अमरूद्दीन खान ने संगत की।