जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में शुक्रवार को पाक्षिक नाट्य योजना के तहत नाटक कामायनी का मंचन किया गया। डॉ. सुरेश प्रसाद रंगा निर्देशित नाटक जयशंकर प्रसाद की कहानी पर आधारित है। जिसका नाट्य रूपांतरण रमेश बोहरा ने किया है। मयूर नाट्य संस्थान, जोधपुर के 16 कलाकारों ने मंच पर कहानी को साकार किया। नाटक के पश्चात रंगकर्मी डॉ. चंद्र दीप हाड़ा और निर्देशक डॉ. सुरेश प्रसाद रंगा ने नाटक पर विचार साझा किए।
कामायनी महाकाव्य जयशंकर प्रसाद के गम्भीर चिन्तन का श्रेष्ठ प्रतिफल है जो मानवता के चरम विकास को मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रस्तुत करता है। नाटक मनु की कथा है जिसमें निराश भयग्रस्त एवं दुःखी वसुधा को शांति और सुख की आशा बंधाते हुए समरसता का संदेश प्रसारित किया गया है। नाटक में दर्शाया गया कि जब भी जीवन और प्रकृति की लय टूटी है तो महाविनाश हुआ है। देव संस्कृति के वैभव और विलासिता ने जब मर्यादा की सीमाएं लांग दी तो परमशक्ति का कोध प्रलय बनकर प्रकट हुआ और देवों का नाश हुआ, एक ही प्रतिनिधि बचे मनुष्यता के प्रथम पिता-मनु।
दैवीय विध्वंस के बाद जिस मानव जाति का विकास हुआ उसके मूल में थी चिंता, जिसके कारण वह जरा और मृत्यु का अनुभव करने को बाध्य हुआ। चिंता के अतिरिक्त मनु में दैवीय और आसुरी वृत्तियों का संघर्ष चलता रहा जिसके परिणामस्वरूप उसमें एक ओर आशा, श्रद्धा, लज्जा और इडा का आविर्भाव हुआ तो दूसरी ओर काम, वासना, ईर्ष्या और संघर्ष की भावना जगी। इन विरोधी वृत्तियों के निरंतर घात प्रतिघात से मनु में निर्वेद जगा और श्रद्धा के पथ प्रदर्शन से यह जीवन दर्शन के रहस्योद्घाटन से आनंद की उपलब्धि का कारण बना।
आज के इस दारुण दौर में एक और मूल्यों का पतन, जीवन में पसरती निराशा है तो दूसरी ओर है प्रसाद की “कामायनी” एक वैचारिक संबल, जिसका चरम लक्ष्य बुद्धि के वशीभूत मन को हृदय के सहयोग से अखण्ड आनंद की प्राप्ति करवाना है। “कामायनी” एक सहज प्रवाहित कृति है जो हमें आत्मिक सुख और शांति का सूत्र प्रदान करती है।
मंच पर अयोध्या प्रसाद गौड़, डॉ.नीतू परिहार, डॉ. पूजा राजपुरोहित, डॉ. काजल वर्मा, अराध्या परिवार, मोहित परिहार, मजाहिर सुल्तान जई, छागन राज राव, गरिमा गौड व भुवन गौड ने विभिन्न किरदार निभाए। प्रकाश परिकल्पना रमेश भाटी नामदेव और प्रकाश संयोजन हरि प्रसाद वैष्णव का रहा।