जयपुर। थ्री एम डॉट बैंड थिएटर फैमिली सोसाइटी की ओर से कला एवं संस्कृति विभाग, राज. और जवाहर कला केन्द्र जयपुर के सहयोग से आयोजित जयपुर रंग महोत्सव (जयरंगम-2023) में कला प्रेमी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। हबीब तनवीर को समर्पित जयरंगम का शुक्रवार को छठा दिन रहा।
नाटकों के साथ दिल छू लेने वाली महफिल-ए-जयरंगम ने सुखद एहसास से सभी को सराबोर कर दिया जिसे आह्वान प्रोजेक्ट के कलाकार वेदी सिन्हा और सुमंत बालकृष्ण ने सुरीले गीतों से सजाया और प्रसिद्ध अभिनेता मकरंद देशपांडे व मशहूर शायर राजेश रेड्डी दर्शकों से रूबरू हुए। शनिवार को जयरंगम में हबीब तनवीर की पुत्री नगीन तनवीर हिस्सा लेंगी, शाम सात बजे मध्यवर्ती में मकरंद देशपांडे के निर्देशन में ‘सर सर सरला’ का मंचन होगा। मकरंद देशपांडे, अभिनेत्री अहाना कुमरा और अभिनेता संजय दाधीच का अभिनय इसमें देखने को मिलेगा।
लड़कियों वाले नाटक में उठाई महिलाओं की आवाज़
कृष्णायन में चैताली दास और तीर्था भट्ट के निर्देशन में ‘वह लड़कियों वाला नाटक’ का मंचन किया गया। अपने शीर्षक की तरह यह नाटक महिलाओं के जीवन पर आधारित है और मुखर होकर उनके हक में आवाज उठाता है। महिला जो पत्नी भी है, बहन-बेटी भी और एक मां भी है। अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में उसे यह भी भूलने पर मजबूर कर दिया जाता है कि वह एक इंसान भी है।
उसे भी चाहिए खुली हवा, बेबाकी से बात करने का हक उसे भी चाहिए, वह भी चाहती है अपने फैसले खुद लेने की स्वतंत्रता। ‘मैं एक चक्र में फंस चुकी हूं, सुबह से लेकर रात तक घर के काम क्या यही है जिंदगी’, युवा कलाकार के ये संवाद पीड़ा को जाहिर करते हैं। इसी तरह अलग-अलग पात्रों के जरिए महिलाओं की कहानी यहां साकार की गयी। जयपुर में पहली बार हुए इस नाटक की कहानी चैताली दास ने लिखी है जो विभिन्न महिलाओं से वार्ता करने के बाद प्राप्त अनुभवों पर आधारित है। अनन्या वैद्य, नेहा उपाध्याय, आयुषी समेरिया, तीर्था भट्ट, यशी थांकी, प्रीति दास, स्निग्धा, परिधि भंडारी, लिपि त्रिवेदी, निशिका लालवानी, चैताली दास, कांक्षा ने भूमिका निभाई।
‘मिले प्रयोग करने की स्वतंत्रता’
‘हम सभी चाहते हैं कि एक कोना ऐसा हो जहां आप स्वतंत्र होकर अपने विचारों को रख सके, स्वतंत्रता का यह भाव हमें
थिएटर में प्रयोग कर रहे युवा निर्देशकों के लिए भी रखना चाहिए’। रंग संवाद में ‘भारतीय रंगमंच की युवा पीढ़ी: पुनर्परिभाषित प्रयोग और जुड़ाव’ विषय पर चर्चा करते हुए युवा नाट्य निर्देशक चिन्मय मदान, मूमल तंवर और सुरुचि शर्मा ने यह भाव जाहिर किए। तीनों ने अपने नाटकों में किए जा रहे प्रयोगों, प्रासंगिकता और चुनौतियों पर चर्चा की। चिन्मय ने बताया कि किसी के लिए शब्द मायने रखते हैं पर मैं अपने नाटक में दृश्यों को तवज्जो देता हूं। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि नाटक में शामिल हर व्यक्ति उससे समान जुड़ाव महसूस करे।
मूमल ने कहा कि साथ रहने वाले लोगों के अनुभवों का प्रयोग वे नाटक में करती हैं। उन्होंने कहा कि थिएटर एक ऐसा माध्यम है जहां सभी अपनी बात बोल सकते हैं। मूमल ने बताया कि मेरा प्रयास रहता है कि कलाकार की कमी नहीं खूबी देखूं व हर दर्शक तक मेरा नाटक पहुंचे। वहीं सुरुचि ने कहा कि नाटक में प्रयोग करना एक साहसिक काम है, प्रयोग को आज नहीं तो कल सकारात्मक नजरिए से देखा जाएगा। प्रयोगात्मक नाटकों की प्रस्तुति के बाद मिली प्रतिक्रिया सुधार करने व आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण होती है।
हर युद्ध में आम इंसान होता है परेशान
रंगायन में राजेश सिंह के निर्देशन में ब्लैक बॉर्ड लैंड नाटक खेला गया। इसे काज हिमेलस्ट्रुप ने लिखा है। नाटक की कहानी तीन पात्रों जॉन, याना और एक सैनिक के इर्द-गिर्द घूमती है। युद्धों से पनपी अमानवीय परिस्थितियों का सजीव चित्रण इस नाटक में किया गया। सभागार में प्रवेश करते ही स्टेज युद्ध में बनी शरणस्थली में तब्दील दिखाई दिया। जॉन व याना यहां शरण लेते है। युद्ध के दौरान याना खुद पर हुए अत्याचारों के बारे में जॉन को बताती है। राजनीतिक मुद्दों और भूमि को लेकर हुए युद्ध कब बरबरता में बदल जाते है याना के अनुभव इसे जाहिर करते हैं।
‘एक लड़की का बलात्कार उसे मार देने से भी ज्यादा क्रूर होता है’, अपनी सहेली से हुए अत्याचार को याना इन संवादों से बयां करती है। इसी बीच सैनिक की एंट्री नाटक में होती है। जब गलती स्वीकारने का समय आता है तो खुलासा होता है कि जॉन ने ही याना की सहेली के साथ बरबरता कि थी जिसके लिए उसे दुश्मन सैनिकों ने उकसाया था। अंत में सैनिक जॉन और याना की हत्या कर देता है। राजेश सिंह ने जॉन, निधि मिश्रा ने याना और शौर्य शंकर ने सैनिक का किरदार निभाया।
महफिल-ए-जयरंगम में सुरीला सफरनामा और सशक्त संवाद
मध्यवर्ती में सर्द शाम में आह्वान प्रोजेक्ट के कलाकार वेदी सिन्हा और सुमंत बालकृष्ण ने निर्गुण भक्ति और प्रेम की अलख जगाई। अपने लिखे मधुर भजनों और गीतों से उन्होंने समां बांधा। ‘मैं प्रेम घर भूली सखी कहां जाऊं’ के साथ उन्होंने शुरुआत की। एक-एक कर उन्होंने जीवन की सच्चाई बयां की, हर कोई सुरीले संगीत के इस सफरनामे में खोया नजर आया। ‘औने-पौने दाम बिके यहां भगवान, लगा बाजार लगी बोली सुन लो…औंधा पड़ा इंसान’ में उन्होंने इंसानी फितरत को जाहिर किया।
वहीं ‘बबुआ के मिलल जीवन रूपी बगीचा, बबुआ का मन ना लागल औरन सींचा’ में बताया कि जीवन बगीचे की तरह है जिसे सत्कर्मों से सींचना पड़ता है। वेदी सिन्हा ने बताया कि पिछले सात साल से आज की दुनिया में इंसानी प्रेम की खोज में है। इसके बाद मंच पर आह्वान हुआ प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक मकरंद देशपांडे और मशहूर शायर राजेश रेड्डी का। दोनों ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जिससे कला प्रेमी अंत तक जुड़े रहे।