जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव का शुक्रवार को 8वां दिन रहा। विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने नए उत्साह का संचार किया। जयपुरवासियों ने ज्यादा संख्या में कार्यक्रम में भागीदारी सुनिश्चित की। दीपपावली के उत्सव के बीच शिल्पग्राम में लगे स्टॉल्स पर खरीददारी करने के लिए लोग ज्यादा संख्या में आ रहे हैं।
इस दौरान शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर लोकगायन, मांगणियार, कालबेलिया, बंजारा, घूमर, चरी, ढोल थाली नृत्य, जादूगर की प्रस्तुति हुई। वहीं मध्यवर्ती के मंच पर छत्तीसगढ़ के बायर नृत्य, मणिपुर के स्टिक डांस व थांग ता यानाबा, जम्मू-कश्मीर के रउफ, झारखण्ड के पुरुलिया छऊ, पंजाब के भांगड़ा, असम के बीहू, राजस्थान के सहरिया व भवाई और बिहार के झिझिया नृत्य की प्रस्तुति हुई।
मध्यवर्ती के मंच पर बायर नृत्य के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। खेतों में धान की बुआई के दौरान की जाने वाली देवता की पूजा का दृश्य छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से साकार किया। इस दौरान उन्होंने दिखाया कि वह सभी मिलकर किस प्रकार पवित्र जल लेकर आते हैं और घरों, गलियों और खेतों मे जल का छिड़काव किया जाता है जिससे धान की बुआई की सफल प्रक्रिया सुनिश्चित की जाती है। पटना से आए कलाकारों ने दुर्गा पूजा के अवसर पर होने वाले झिझिया नृत्य की प्रस्तुति दी। वहीं मणिपुर के कलाकारों ने स्टिक डांस में स्टिक से बेहतर संतुलन का ऐसा प्रदर्शन किया कि सभी आश्चर्यचकित रह गए।
जम्मू-कश्मीर की ओर से रउफ की प्रस्तुति दी गई। यह नृत्य अच्छी फसल होने के उपलक्ष में शुक्रिया करने के लिए किया जाता है। झारखंड के कलाकारों ने पुरुलिया छऊ में महिषासुर मर्दनी के प्रसंग का वर्णन किया, ऊर्जा से सराबोर करने वाली प्रस्तुति में कलाकारों के करतबों ने सभी को रोमांचित कर दिया। सहरिया नृत्य की प्रस्तुति में कलाकारों ने विभिन्न वन्यजीवों का स्वांग रचा। मणिपुर के कलाकारों ने थांग ता यानाबा की प्रस्तुति दी गई जिसमें युवक-युवतियों ने नृत्य में तलवारबाजी और मार्शल आर्ट का संयोजन प्रदर्शित किया जिसने सभी को रोमांच से भर दिया।
असम की संस्कृति का प्रमुख अंग बीहू नृत्य की प्रस्तुति ने सभी का मन मोहा। पंजाब के कलाकारों ने लोकगीत के साथ प्रसिद्ध लोकनृत्य भांगड़ा किया जिसमें धमाल, झूमर और लुड्डी के गुर दिखाई दिए। इसमें जुगनी का मेले में घूमना और उत्साह के साथ आनंदित होने का वर्णन भांगड़ा के माध्यम से किया। आखिर में भवाई नृत्य की प्रस्तुति में कलाकारों ने राजस्थानी संस्कृति के वैभव को मंच पर साकार किया।