जयपुर। थ्री एम डॉट बैंड थिएटर फैमिली सोसाइटी की ओर से कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान और जवाहर कला केन्द्र, जयपुर के सहयोग से आयोजित जयपुर रंग महोत्सव (जयरंगम-2023) का तीसरा दिन मशहूर नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर के नाम रहा। मंगलवार को हबीब तनवीर पर चर्चा और डॉक्यूमेंट्री व उनके प्रसिद्ध नाटक चरणदास चोर को देखने में यह दिन बीता और उनसे जुड़ी यादें सभी के दिलों में बस गयी।
‘मैजिक फ्रूट में सत्य की खोज’
‘मैं देखता हूं इंद्रधनुष का आठवां रंग, यह रंग है मेरी रचनात्मकता का’ ये शब्द है बड़ा लेखक बनने का सपना लेकर झिलमिल नगरी पहुंचे राजवीर का। राजवीर जो मुख्य पात्र है नाटक ‘मैजिक फ्रूट’ का। युवाओं को मंच प्रदान करने को स्पॉटलाइट में हुए नाटक में युवा निर्देशक वैष्णव व्यास के निर्देशन में यह नाटक हुआ। यह प्रयोगात्मक नाटक पहचान पाने को लालायित एक युवक की कहानी है। राजवीर अपने परिवार को छोड़कर शहर आता है। वह लिखता है नए गीत और कविताएं। शब्दों या क्रिएटिविटी को बाजार की वस्तु समझने वाले प्रोड्यूसर उसे मौका नहीं देते है। इससे हताश राजवीर की जिंदगी अपने फ्लैट में सिमट जाती है।
उसका साथी बनता है कमरे में छाया अंधेरा। ‘आंख बंद हो और रोशनी दिखायी दे’ अपने अंदर की रोशनी के आलोक में राजवीर को ज्ञान होता है सत्य का कि ‘सांसारिक मोह को त्याग खुद की खोज करो’। मानव शुरुआती दौर में बंदर था जिसे लालसा थी अपनी भूख मिटाने को एक फल की। क्रमिक विकास के बाद जब यह बंदर इंसान बना तो समझ विकसित होने के बाद भी वह फल की ओर खींचा जाता है। अंत में उसी बंदर से राजवीर की मुलाकात होती है। ‘मंकी वांट फ्रूटस, माय फ्रूट इस ट्रुथ’ इसी के साथ राजवीर सत्य से दर्शकों का भी साक्षात्कार करवाता है। नाटक की खास बात यह रही कि आर्केस्ट्रा, राजवीर की लिखी कविताओं को बड़े ही आकर्षक तरीके से संगीत में पिरोकर उन्होंने पेश किया। वैष्णव व्यास, नोसमिता, मनन मेहता, अभि सोलंकी, नंदन गुप्ता ने विभिन्न रोल निभाए।
‘हबीब के नाटक और कहानियां ही उनकी विरासत’
‘पुरातन भारतीय रंगमंच विश्व में विशेष पहचान रखता है, हबीब तनवीर उन विरले रंगकर्मियों में थे जो लेखन और निर्देशन में बराबरी का दखल रखते थे यही खासियत है जो उन्हें सभी से अलग बनाती है।’ हबीब तनवीर और उनका रंगमंच पर चर्चा करते हुए समीक्षक व आलोचक अजीत राय ने यह बात कही। उनके साथ मंच साझा किया हबीब तनवीर के शिष्य रहे रामचंद्र सिंह ने। सिंह हबीब तनवीर के नए थिएटर डायरेक्टर भी हैं।
दोनों वक्ताओं ने हबीब तनवीर के रंगमंच, उनके द्वारा किए गए प्रयोगों और उनके जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला।
अजीत राय ने बताया कि हबीब तनवीर ने लंदन से ड्रामा की पढ़ाई की और भारत में आकर क्षेत्रीय कलाकारों के साथ नाटक किए। उनके नाटक विदेशों में हुए और कई पुरस्कार अपने नाम किए। फ्रांस में मंचित नाटक का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह माइनस 5 डिग्री तापमान में भी वहां के लोगों ने छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य देखा। रामचंद्र सिंह ने बताया कि चरणदास चोर नाटक इतना प्रसिद्ध नाटक है जिसे तत्कालीन समय में और आज भी पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि वे फिल्मों में काम करने की इच्छा रखते थे लेकिन हबीब तनवीर के संपर्क में आने के बाद यह खयाल उन्हें दोबारा नहीं आया। 1975 में श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म बैंडिट क्वीन को छोड़कर वे हबीब तनवीर के साथ पहला नाटक ‘देख रहे नैन’ करने इंग्लैंड पहुंचे।
उन्होंने बताया कि विदेशी नाटकों को भी हबीब तनवीर बखूबी भारतीय परिवेश के हिसाब से तैयार करते थे। इस काम में वह बड़ा समय देते थे। वे एक सादगीपूर्ण इंसान थे, रिहर्सल के दौरान ही शिष्यों को गुर सिखाते थे। उन्होंने बताया कि हबीब तनवीर का थिएटर लोक जीवन में बसा था जो किसी भी बाहरी प्रभाव से मुक्त और वास्तविक होता है। रामचंद्र ने कहा कि हबीब तनवीर के नाटक और कहानियां ही उनकी विरासत है इसलिए उनके पुराने नाटकों का पुन: मंचन कर नया थिएटर उन्हें जीवंत कर रहा है। केन्द्र में हबीब तनवीर के सफरनामे को दर्शाने वाले प्रदर्शनी भी लगायी गयी है जिसमें तस्वीरों और प्रोप्स के जरिए उनके जीवन और रंगमंच को दर्शाया गया है। अजीत राय ने प्रदर्शनी को सराहा और बताया कि महोत्सव के समापन सारोह में हबीब तनवीर की पुत्री नगीन तनवीर भी हिस्सा लेंगी।
अपने वचनों का पक्का चरणदास चोर!…
हबीब तनवीर के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘गांव के नाऊ थिएटर, मोर नाऊ हबीब’ भी इस दौरान दिखायी गयी। इसमें चरणदास चोर तैयार करने के दौरान के दृश्य दिखाए गए। मध्यवर्ती में हबीब तनवीर के निर्देशन में तैयार प्रसिद्ध नाटक चरणदास चोर का मंचन किया गया। यह नाटक मूलत: विजयदान देथा की कहानी फितरती चोर पर आधारित है। 1975 में पहली बार मंचन हुआ था। छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को इकट्ठा कर हबीब तनवीर ने इसे तैयार किया था। देश विदेश में सैकड़ों मंचों पर खेले गए इस नाटक को 1982 में एडिनबर्ग में हुए विश्व नाट्य सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ नाटक का पुरस्कार मिला था।
आज भी नाटक का वही स्वरूप बरकरार है। छत्तीसगढ़ के पंथी नृत्य के साथ नाटक की शुरुआत होती है। नाटक एक ऐसे चोर की कहानी है,जो आदतन चोर है। चरणदास एक गांव से सोने की थाली चोरी करके फरार है, जिसके पीछे पुलिस लगी हुई है। पुलिस को चकमा देने के लिए वह एक आश्रम में प्रवेश करता है। गुरुजी का शिष्य बनने की इच्छा व्यक्त करने पर गुरुजी उसे हमेशा सच बोलने का प्रण दिलाते हैं।
चरणदास मज़ाक में चार प्रण और लेता है कि सोने की थाली में नही खाऊंगा , किसी जुलूस में हाथी-घोड़े पर नही बैठूंगा, कभी किसी देश की रानी से शादी नही करूंगा और किसी देश का राजा नही बनूँगा। चरणदास के इन्ही वचनों पर पूरे कथानक का ताना-बाना है, जो एक एक करके उसकी ज़िन्दगी में सामने आते हैं और चरणदास अपने वचनों के निर्वहन में मरते दम तक खरा उतरता है।