जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित कावड़ निर्माण कार्यशाला का सोमवार को शुभारंभ हुआ। बस्सी चितौड़गढ़ से पहुंचे विशेषज्ञ प्रशिक्षक द्वारिका प्रसाद सुथार व सह प्रशिक्षक गोविंद लाल सुथार 15 फरवरी तक सायं 3:00 से सायं 6:00 बजे तक चलने वाली कार्यशाला में कावड़ निर्माण के गुर सिखाएंगे। केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक सुश्री प्रियंका जोधावत और प्रशिक्षक द्वारिका प्रसाद ने बोर्ड पर चित्र बनाकर कार्यशाला की शुरुआत की। सुश्री प्रियंका जोधावत ने पोर्टफोलियो भेंट कर विशेषज्ञों का स्वागत किया।
प्रियंका जोधावत ने कहा कि कार्यशालाओं की कड़ी में केन्द्र की ओर से कावड़ निर्माण की कार्यशाला का आयोजन किया गया है। यह कार्यशाला प्रदेश की पारंपरिक कला से रूबरू होने का अवसर है। इन कार्यशालाओं के जरिए आमजन को लुप्तप्राय कलाओं से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
500 सालों से प्रचलित है कावड़ वाचन की कला
कावड़ निर्माण के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित द्वारिका प्रसाद सुथार ने बताया कि लकड़ी से कावड़ बनाने की कला 500 सालों से प्रचलित लोक कला है। भाट समुदाय के लोग बस्सी, चित्तौड़गढ़ के सुथार कलाकारों से इसे बनवाते थे। शुरुआत में इन पर धार्मिक कथाओं का चित्रण करवाया जाता था। भाट कंधे पर इस कावड़ को अपने जजमानों के घर ले जाकर इसके जरिए कथाएं सुनाते थे, इन्हें कावड़िया भाट कहा जाता है।
यह कावड़ मनोरंजन और धर्म प्रसार दोनों का माध्यम बनी। उन्होंने बताया कि कावड़ के अलग-अलग पाट पर अलग प्रसंग अंकित होता है। वर्तमान विषयों के अनुसार भी कावड़ निर्माण अब किया जाने लगा है। द्वारिका प्रसाद सुथार ने कहा कि कार्यशालाएं ऐसी प्राचीन कलाओं को जीवंत रखने का सबसे बेहतर तरीका है।