जयपुर। जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में शनिवार को मौजूद हर शख्स राष्ट्र प्रेम के भावों से सराबोर नजर आया। सभी दर्शकों ने महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के त्याग और बलिदान को नमन किया जिनके सामने हिमालय भी बौना जान पड़ता है। मौका था राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति न्यास की ओर से नाट्य प्रस्तुति ‘लोकमान्य तिलक’ के आयोजन का। तिलक के अमर उद्घोष ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर रहूंगा’ के 107 वर्ष पूर्ण होने के पावन अवसर पर नाटक का मंचन किया गया। नाटक की संकल्पना करने वाले न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार ने बताया कि लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी रणभेरी बजायी जिसकी गूंज समूचे देश में सुनाई दी। देशभर में 50 से अधिक बार मंचित हो चुके इस नाटक का पहली बार राजस्थान में मंचन किया गया।
इस ऐतिहासिक आयोजन में केन्द्रीय राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे मुख्य अतिथि रहे। जयपुर सांसद रामचरण बोहरा, सुप्रसिद्ध कवि बलवीर सिंह ‘करुण’, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार, रामधारी सिंह दिनकर के पौत्र ऋत्विक उदयन विशिष्ट अतिथि रहे। सभागार में राष्ट्रगान गाया गया। कला, साहित्य, संस्कृति, पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग की प्रमुख शासन सचिव और जवाहर कला केन्द्र की महानिदेशक गायत्री राठौड़ ने सभी अतिथियों का अभिनंदन किया। सभी अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन के बाद स्वतंत्रता संग्राम में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के योगदान का बखान किया। इसके बाद आइडियल ड्रामा एंड एंटरटेनमेंट अकादमी के कलाकारों ने नाटक का मंचन किया। इस दौरान केंद्र की अति. महानिदेशक सुश्री प्रियंका जोधावत अन्य प्रशासनिक अधिकारी व बड़ी सख्या में कला प्रेमी मौजूद रहे।
रंगायन में प्रवेश करते ही दर्शक पहुंच जाते हैं उस दौर में जब भारत में अंग्रेजी हुकुमत का शासन था जिसे जड़ से उखाड़ फेकने के लिए तिलक देशव्यापी आंदलनों का नेतृत्व कर रहे थे। मंच जो कारागार में तब्दील था जिसका हर कौना तिलक की वीर गाथा का बखान कर रहा था। 10 प्रसंगों में कहानी को पिरोया गया।
नाटक की शुरुआत तिलक और उनकी बीमार पत्नी के बीच संवाद से होती है। ‘मुझे इस दुनिया में अन्याय के विरुद्ध लड़ने और देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने के लिए भेजा गया है, स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर रहूंगा।’ इन्हीं संवादों के साथ तिलक प्रारम्भ में ही अपने जीवन उद्देश्य से सभी को रूबरू करवाते हैं। इसी के साथ देश भक्ति के अदम्य भाव का संचार होता है।
लोकमान्य के जीवन से साक्षात्कार करवाने वाला नाटक इतिहास के झरोखों में भी ले जाकर खड़ा कर देता है। कभी तिलक सभाओं में भाषण देते नजर आते हैं तो कभी अध्ययन में लीन रहते हैं। नाटक में अंग्रेज अफसरों से उनके संवाद में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ उनका आक्रोश झलकता है तो अपने देशवासियों को वे पढ़ने, देश के लिए एक होकर बलिदान देने, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक उन्नति के लिए प्रेरित करते नजर आते हैं।
देश को एकता के सूत्र में पिरोने और जन जागृति के लिए उनके प्रयासों का भी मंच पर सजीव चित्रण किया गया। अपने अखबारों केसरी और मराठा में आजादी की अलख जगाने वाले लेख लिखने को लेकर जब उन्हें कोर्ट में पेश किया गया तो उन्होंने 21 घंटे तक दलील दी थी। छह साल के कालापानी की सजा के दौरान भी तिलक पढ़ते लिखते रहे, उन्होंने जेल में ही गीता रहस्य किताब भी लिखी।
हमेशा रहेगा तिलक का नाम
अंत में सभी कलाकार एक स्वर में कुछ इस तरह तिलक के प्रति अपने भाव जाहिर करते हैं, ‘आपको हमसे रुखसत हुए इतने बरस हो गये है लेकिन हम आपको नहीं भूले, आपकी सेवाओं को यह देश कभी नहीं भूलेगा। जब तक सूरज चाँद रहेगा लोकमान्य तिलक आपका नाम रहेगा। आपने हमें यह नारा दिया था स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा और हमने 15 अगस्त 1947 को वो अधिकार लेकर दिखा दिया।’ सभागार में मौजूद दर्शकों ने जय हिन्द के साथ लोकमान्य तिलक को नमन किया।