जयपुर। शक्ति का साधना का नौ दिवसीय शारदीय नवरात्र पर्व तीन अक्टूबर को आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा से शुरू होा जो कि 11 अक्टूबर तक चलेगा। सनातन धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है। साल में दो बार नवरात्र मनाई जाती है। छोटीकाशी में नवरात्र की तैयारियां शुरू हो गई है। कई स्थानों पर माता के दरबार सजाए जाएंगे। नौ दिन के पर्व पर तृतीया तिथि दो दिन 5 और 6 अक्टूबर को रहेगी। अष्टमी और नवमी एक ही दिन 11 अक्टूबर को मनाई जाएगी। दशहरा 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसी दिन प्रतिमाओं का विर्सजन भी होगा, जो 13 अक्टूबर तक जारी रहेगा।
इस बार मां दुर्गा पालकी में सवार होकर आएगी। मातारानी का पालकी में में आना मिश्रित फलदायी। मां दुर्गा की किसी भी रूप में उपासना करने वाले साधकों के लिए शुभ फलदायी रहेगा। कई शुभ योग रहेंगे: ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि नवरात्र में 5 से 8 अक्टूबर तक सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का संयोग रहेगा। इसके बाद 11-12 अक्टूबर को भी यह योग रहेंगे, जो खरीदारी तथा पूजा-अनुष्ठान के लिए शुभ फलदायी होंगे। पहले दिन 3 अक्टूबर को सुबह सवा छह बजे से कलश स्थापना के मुहूर्त शुरू हो जाएंगे। इस बार तृतीया तिथि 4 और 5 अक्टूबर को दो दिन रहेगी। इस कारण से तिथि की घटा-बढ़ी की वजह से अष्टमी एवं नवमी 11 अक्टूबर को एक साथ मनाई जाएगी।
वार से जुड़ा है सवारी का संबंध:
डॉ. मिश्रा ने बताया कि नवरात्र में मां आदि शक्ति का भू लोक पर आगमन होता है। इस बार उनका आगमन पालकी में होगा। यह गुरुवार का दिन होगा। पुराणों में वर्णन है कि प्रतिपदा पर रविवार या सोमवार हो तो माता की सवारी हाथी, मंगलवार या शनिवार हो तो अश्व, गुरुवार या शुक्रवार हो तो डोली या पालकी, और बुधवार हो तो वाहन नाव होता है।
घट स्थापना मुहूर्त:
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6.14 से लेकर सुबह 7.21 तक रहेगा, यानी 1 घंटे 6 मिनट तक घट स्थापना का शुभ मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.45 से लेकर दोपहर 12.33 तक रहेगा। नवरात्र का समापन 11 अक्टूबर को होगा।