जयपुर। विश्व के प्रथम चिकित्सक महर्षि चरक की जयंती शुक्रवार को विभिन्न आयुर्वेदिक संस्थानों में मनाई गई। वैद्यों ने महर्षि चरक के चित्र का पूजन कर पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर कई स्थानों पर विचार गोष्ठी भी हुई। विश्व आयुर्वेद परिषद-राजस्थान के कार्यालय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रदेश सचिव डॉ बी एल बराला ने कहा कि अथर्ववेद के उपवेद और पंचम वेद आयुर्वेद के आदि चिकित्सक महर्षि चरक को भगवान शेषनाग का अवतार माना जाता है।
उनका जन्म ईसा से 200 वर्ष पूर्व कश्मीर में पुंछ के पास कपिष्ठल नामक गांव में हुआ था। श्वेत वाराह पुराण के अनुसार उनका जन्म दिन श्रावण शुक्ल पक्ष नाग पंचमी को मनाया जाता है। आचार्य चरक ने आज से 2150 वर्ष पूर्व चरक संहिता का लेखन किया था। चरक संहिता मूल रूप से अग्निवेश तंत्र का ही परिष्कृत ग्रंथ है।
डॉ. नरेश गर्ग ने कहा कि महर्षि चरक ने 2000 वर्ष पूर्व जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया उन सिद्धांतों के आधार पर आज भी चिकित्सा की जाती है। अभी दो वर्ष पूर्व पूरे विश्व में कोरोना नमक व्याधि का आतंक हुआ था। जिसमें करोड़ों लोगों की जान गई थी। कोरोना व्याधि की चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास भी नहीं है। परंतु महर्षि चरक के सिद्धांतों के अनुसार कोरोना नामक व्याधि में वात,पित्त और कफ इन तीनों दोषों का सन्निपात होने के कारण से संप्राप्ति होती है।
अत: यदि इन दोषों की समता स्थापित की जाए तो यह रोग दूर हो सकता है। इस सिद्धांत पर कार्य करते हुए आयुर्वेद चिकित्सा संस्थानों ने कोरोना के रोगियों की चिकित्सा की और उसमें सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के संक्रामक व्याधियों का भी उल्लेख चरक में नहीं है,यथा स्वाइन फ्लू, टाइफाइड, मलेरिया, चिकनगुनिया,जीका वायरस,डेंगू,चांदीपुरा वायरस इत्यादि परंतु महर्षि चरक के त्रिदोष के सिद्धांत के आधार पर चिकित्सा करने से इन समस्त आधुनिक समय में प्राप्त रोगों की चिकित्सा सरलता से होती है।