जयपुर। माघ माह की अमावस्या बुधवार को मौनी अमावस्या के रूप में मनाई जाएगी। उत्तरायण की पहली पर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और सिद्धि योग होने से इसका लाभ कई गुणा बढ़ गया है। श्रद्धालु गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान करेंगे। देश-प्रदेश के सभी तीर्थ स्थलों पर मौनी अमावस्या पर स्नान, दान, तर्पण का जोर रहेगा। छोटीकाशी के सभी मंदिरों में विशेष झांकियों के दर्शन होंगे। गौशालाओं और मंदिरों के बाहर दान पुण्य किया जाएगा। जो लोग पवित्र नदियों में स्नान नहीं कर पाएंगे वे गोविंद देवजी मंदिर की ओर से सोमवार को वितरित किए कुंभ जल को पानी में मिलाकर स्नान का लाभ उठा सकेंगे।
ज्योतिषाचार्य डॉ.महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि महाकुंभ में मौनी अमावस्या तिथि के दिन विशिष्ट त्रिवेणी संयोग बन रहा है। मौनी अमावस्या तिथि पर 144 वर्ष बाद समुद्र मंथन तुल्य योग बन रहा है जो कि विशेष फलदायी है। यह योग समुद्र मंथन के योग के समान है। समुद्र मंथन तुल्य योग मंगलवार अपराह्न 2:35 से शुरू हो गया जो कि 8 फरवरी सुबह 7:25 बजे तक रहेगा। इस योग में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होगा। शास्त्रों और पुराणों में वर्णन है कि महाकुंभ में मौनी अमावस्या तिथि पर पवित्र संगम में स्नान करना मोक्षदायक माना गया है। श्रद्धालु किसी विशेष योग और नक्षत्र के बजाए सुविधा के साथ किसी भी घाट पर स्नान करें, उन्हें संगम स्नान जैसे ही पुण्य फल की प्राप्ति होगी।
144 साल बाद बन रहा है विशिष्ट संयोग:
डॉ. मिश्रा ने बताया कि पंचांग की गणना के अनुसार माघ मास की अमावस्या तिथि 28 जनवरी को शाम को शुरू हो गई। यह 29 जनवरी को शाम 06: 05 मिनट तक रहेगी। माघ मास की अमावस्या तिथि पर मकर राशि में सूर्य, चंद्रमा और बुद्ध तीनों ग्रह स्थित हो रहे हैं तथा बृहस्पति ग्रह नवम दृष्टि में है। इस विशिष्ट संयोग को त्रियोग या त्रिवेणी योग कहा जाता है। यह त्रिवेणी योग समुद्र मंथन काल के योग के समान है। इस योग में त्रिवेणी स्नान विशेष फलदायी है।
मौनी अमावस्या के दिन ही वैवस्वत मनु का जन्म हुआ था। इस दिन मौन व्रत रख कर स्नान करना शुभ माना जाता है। वैसे तो मौनी अमावस्या पर स्नान का उत्तम मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त में होता है, लेकिन पूरे दिन ही मौनी अमावस्या तिथि का स्नान करना शुभ माना गया है। उदया तिथि होने कारण पूरे दिन ही अमावस्या का स्नान होगा। जो लोग त्रिवेणी संगम में स्नान नहीं कर पा रहे हैं वो संगम या गंगा जल को पानी में मिलाकर स्नान करें, उससे उन्हें संगम स्नान का ही फल प्राप्त होगा।