जयपुर। प्रोबासी बेंगाली कल्चरल सोसायटी द्वारा जय क्लब, जयपुर में इस साल भी दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े उत्साह से किया गया। दुर्गा पूजा महोत्सव में सुबह दर्पण विसर्जन का कार्यक्रम हुआ। सोसायटी के मानद अध्यक्ष डॉ एस. के. सरकार ने बताया कि दुर्गा पूजा में दर्पण विसर्जन का विशेष महत्व होता है।
दर्पण विसर्जन का आयोजन देवी दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन से पहले किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक दर्पण को देवी दुर्गा के सामने रखा जाता है, जिससे भक्तों को देवी की छवि दिखाई देती है। यह प्रतीकात्मक होता है, क्योंकि इसे देवी की वास्तविक उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
दर्पण विसर्जन का धार्मिक महत्व यह है कि यह भक्तों को याद दिलाता है कि देवी दुर्गा का आशीर्वाद और शक्ति उनके साथ हमेशा बनी रहती है, भले ही मूर्ति का विसर्जन हो जाए। यह विश्वास किया जाता है कि देवी की प्रतिमा जल में विलीन हो जाने के बाद भी, उनकी छवि और आशीर्वाद उनके दिलों में रहेंगे। यह अनुष्ठान विशेष रूप से बंगाली परंपरा में महत्वपूर्ण माना जाता है, जो माँ दुर्गा की विदाई के समय भक्तों के भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है।
इसके बाद में पारितोषिक वितरण समारोह हुआ जिसमें इन पांच दिनों में जितनी भी प्रतियोगिताएं आयोजित हुई उनके विजेताओं उप विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। बाद में दुर्गा पूजा महोत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाने वाला उत्सव सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सिंदूर खेला दुर्गा पूजा का प्रमुख आकर्षण होता है। अध्यक्ष डॉ एस. के. सरकार ने बताया कि सिंदूर खेला दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, विजयादशमी पर मनाया जाता है।
यह बंगाली परंपरा लगभग 200 साल पुरानी मानी जाती है, जिसमें विवाहित महिलाएं देवी दुर्गा के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस उत्सव को मनाती हैं और मां दुर्गा से अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। यह परंपरा महिलाओं के बीच भाईचारे, उनके परिवार की समृद्धि और लंबे वैवाहिक जीवन की कामना का प्रतीक मानी जाती है।
सिंदूर खेला को आजकल व्यापक रूप से हर तबके की महिलाएं मनाने लगी हैं, जिससे यह सिर्फ विवाहित महिलाओं तक सीमित न रहकर एक सर्वजन कार्यक्रम बन गया है।
इसके बाद मां दुर्गा, गणेश जी, लक्ष्मी जी, कार्तिकेय जी और सरस्वती जी की मूर्तियों को शोभा यात्रा के रूप में नेवटा बांध में लेजाकर पहले सभी मूर्तियों की आरती की गई और इसके पश्चात एक एक कर सभी मूर्तियों को पानी में विसर्जित कर दिया गया। मूर्तियों के विसर्जन के साथ ही पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महोत्सव का समापन हो गया।