जयपुर। सर्दी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए च्यवनप्राश खाने का प्रचलन अभी भी जारी है। लोग कंपनियों के च्यवनप्राश के बजाय आयुर्वेद के विशेषज्ञों की देखरेख में आंखों के सामने च्यवनप्राश बनाकर खाने में ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। इसलिए जयपुर में एक दर्जन से अधिक स्थानों पर च्यवनप्राश बनाने का काम जोरों पर है।
यह च्यवनप्राश बाजार में बेचने के बजाय आपस में ही वितरित हो रहा है। इससे पैसे की भी बचत हो रही है। टोंक रोड सांगानेर स्थित वैदिक औषधीय पादप केन्द्र में पिछले पंद्रह दिनों से च्यवनप्राश बनाया जा रहा है। आर्गेनिक फार्मर प्रोड्यूसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय गौशाला सहयोग परिषद के अंतराष्ट्रीय संयोजक डॉ. अतुल गुप्ता की देखरेख में आंवले सहित दर्जनों औषधीय पौधों की छांव में च्यवनप्राश बनाया जा रहा है।टोंक रोड सांगानेर स्थित वैदिक औषधीय पादप केन्द्र में पिछले पंद्रह दिनों से च्यवनप्राश बनाया जा रहा है। पांच सौ किलो से अधिक च्यवनप्राश बिक चुका है। लोग अपनी आंखों के सामने च्यवनप्राश बनते देख रहे हैं।
डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि इस च्यवनप्राश की खसियत यह है कि इसमें डलने वाले ए ग्रेड के आंवलों का उत्पादन भी इसी औषदीय पादक केन्द्र में होता है। ज्यादातर औषधीय भी यहीं उगाई जाती है। इसलिए भारी मांग के बावजूद सीमित मात्रा में ही च्यवनप्राश तैयार कर पाते हैं। उल्लेखनीय है कि वैदिक औषदीय पादक केन्द्र प्राकृतिक खेती का 2017 से केन्द्र बना है जहां 300 से अधिक औषधीय पादपों की खेती हो रही है। गौ आधारित खेती के कारण एक पेड़ पर 300 किलो आंवला का उत्पादन होता है जो कि अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है। जैविक खेती देखने के लिए यहां देश-दुनिया के विशेषज्ञ आते रहे हैं।
पचास तरह की जड़ी-बूटियां करती है कमाल:
डॉ. गुप्ता ने बताया कि च्यवनप्राश में औषधीय महत्व वाली लगभग 50 तरह की जड़ी-बूटियां होती हैं। केसर, नागकेशर, पिप्पली, छोटी इलायची, दालचीनी, बंसलोचन, शहद और तेजपत्ता, पाटला, अरणी, गंभारी, विल्व और श्योनक की छाल, नागरमोथा, पुष्करमूल, कमल गट्टा, सफेद मूसली, तिल का तेल, चीनी, गुड़,जायफल, दालचीनी, तेजपत्ता, हरी इलायची, लौंग, काली मिर्च, नागकेशर, पिप्पली, पाटला, अरणी, गंभारी, विल्व, श्योनक की छाल, सहित कई वनस्पतियां मिलाकर च्यवनप्राश तैयार किया जाता है।