जयपुर। संत शिरोमणि आचार्य 108 विद्यासागर महामुनिराज के परम प्रभावक शिष्य अर्हम योग प्रणेता मुनि प्रणम्य सागर महाराज के मुखारबिन्द से गुरुवार को मीरा मार्ग के आदिनाथ भवन पर कवि भूधरदास द्वारा विरचित पार्श्वनाथ पुराण के चौथे अधिकार का वाचन किया गया। जिसमें बताया गया कि हम सब स्वयं को कर्ता मानकर अहंकार को पृष्ठ करते हैं। हर अच्छे काम का क्रेडिट स्वयं लेते हैं और यदि काम नही होता है तो उसके लिए अज्ञानी लोग भगवान को जिम्मेदार ठहराते है।
जबकि किसी भी कार्य को सफल होने में अंतरग एवं बहिरंग कारणों का एक साथ होना जरूरी है। पुरुषार्थ एवं भाग्य इन दोनों के एक साथ होने पर ही किसी भी कार्य की सफलता निर्भर करती है। हमें कर्ता भाव नहीं लाना चाहिए। सभी कार्य कर्म के अधीन है। भूतकाल के चक्कर में वर्तमान को खराब नहीं करना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि हमारे सामने जैसे पदार्थ होते हैं वैसे ही हमारे भाव हो जाते हैं। यदि वीतराग मुद्रा देखोगे तो संयम भाव आयेगें और यदि सरागी देखोगे तो राग के भाव आयेगें। जैसा सामने कारण होता है, वैसे ही हमारे भाव हो जाते हैं।
इससे पूर्व आचार्य विद्यासागर महामुनिराज की संगीतमय पूजा की गई। आचार्य समय सागर महाराज एवं मुनि प्रणम्य सागर महाराज का अर्घ्य चढाया गया। जिसके तत्पश्चात अर्हम चातुर्मास समिति 2024 के संरक्षक समाजश्रेष्ठी नन्द किशोर – शांति देवी, प्रमोद – नीना, सुनील – नीता, अनुपमा-युवराज पहाड़िया परिवार ने संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महामुनिराज एवं आचार्य समय सागर महाराज के चित्र का जयकारों के बीच अनावरण किया गया। भगवान आदिनाथ के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया गया। जिसके बाद मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज के पाद पक्षालन एवं शास्र भेट करने का पुण्यार्जन किया।
समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुनील बैनाडा एवं उपाध्यक्ष तेज करण चौधरी ने बताया कि इससे पूर्व पहाड़िया परिवार ने मुनि श्री को श्रीफल भेट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। अतिथियों को समिति की ओर से तेजकरण चौधरी, अरुण पाटोदी, विजय झांझरी ने स्मृति चिन्ह भेट किया।