जयपुर। उत्तर राजस्थान और पंजाब के सीमावर्ती इलाकों के किसानों ने अपनी कपास की फसल पर गुलाबी सुंडी के हमलों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पिछले फसल सीजन के दौरान इन क्षेत्रों के किसानों को गुलाबी सुंडी के लगातार हमलों के कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था, जिससे इस खतरे से निपटने के लिए प्रभावी समाधान खोजने की जरूरत बढ़ गई है।
गुलाबी सुंडी कपास की फसल को तबाह करने वाला कीट है। इसका निरंतर प्रकोप उक्त क्षेत्रों में कपास की खेती के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। इसका प्रभाव विभिन्न कारकों द्वारा बढ़ता जा रहा है, जिनमें जलवायु की परिस्थितियां, फसल विविधीकरण की कमी, और बीटी कॉटन की कुछ किस्मों में कीटनाटकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास शामिल है। यह कीट कपास की फसल को नुकसान पहुंचा कर उपज को कम कर देता है, जिससे क्षेत्र के किसानों की आजीविका प्रभावित होती है।
इन चुनौतियों के मद्देनजर, कीट विशेषज्ञ तथा प्रगतिशील किसान गुलाबी सुंडी के संक्रमण से निपटने के लिए एक रणनीतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की सिफारिश करते हैं। किसानों को एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी जाती है, जिसमें फसल विविधीकरण जैसे सुरक्षात्मक उपायों को लागू करना शामिल है। गुलाबी सुंडी के जीवन चक्र को बाधित करने और किसी खास क्षेत्र में इसकी उपलब्धता के घनत्व को कम करने के लिए कपास की खेती अन्य फसलों के साथ बदल-बदल कर करने की सिपारिश की जाती है। इसके अलावा, कपास की जल्दी रोपाई करने की सिफारिश की जाती है, ताकि फसल को गुलाबी सुंडी के संक्रमण के चरम समय से पहले ही तैयार किया जा सके। ऐसा करने से गुलाबी सुंडी के हमलों के प्रति कपास के पौधों की संवेदनशीलता कम हो जाती है।
इसके अतिरिक्त, किसान गुलाबी सुंडी को कपास के खेतों से दूर करने के लिए भिंडी जैसी जाल फसलों का रणनीतिक रूप से उपयोग कर सकते हैं, जिससे संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सकता है। कपास की फसल की नियमित निगरानी आवश्यक है, ताकि संक्रमित होने के संकेतों, जैसे कि क्षतिग्रस्त बोंड और लार्वा, का पता लगाया जा सके, और किसान समय रहते हस्तक्षेप कर कीट के प्रसार को रोक सकें। इसके अलावा, फेरोमोन ट्रैप के उपयोग से गुलाबी सुंडी की गतिविधियों को ट्रैक करने और कीटनाशक के छिड़काव के समय का अनुकूलन करने में मदद मिलती है, जिससे कीट नियंत्रण के उपायों की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।
कृषि अनुसंधान केंद्र, श्रीगंगानगर के वैज्ञानिक रूप सिंह मीणा गुलाबी सुंडी के संक्रमण से निबटने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि ‘गुलाबी सुंडी के संक्रमण से निबटने के लिए विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित रणनीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण है। जैसे बुवाई से पहले उचित फसल अवशेष प्रबंधन के जरिये प्रतिकूल मौसम एवं अन्य आपात स्थितियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। कपास की उपज को गुलाबी सुंडी के विनाशकारी प्रभाव से बचाने के लिए सक्रिय तैयारी और रणनीतिक प्रबंधन आवश्यक हैं।’
उत्तर राजस्थान और पंजाब के प्रगतिशील किसान भी कीटनाशकों के छिड़काव और फसल प्रबंधन की प्रथाओं के संबंध में विशेषज्ञों की सिफारिशों का अनुपालन करने के महत्व पर जोर देते हैं। मानसा, पंजाब के प्रगतिशील किसान जसवीर सिंह कहते हैं, ‘कीटनाशक का छिड़काव और फसल प्रबंधन प्रथाओं के संबंध में विशेषज्ञों की सिफारिशों का पालन करना कपास की उपज को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है।’ उत्तर राजस्थान के कपास किसान गुरप्रीत सिंह कहते हैं, ‘गुलाबी सुंडी के संक्रमण से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने और कपास की फसलों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में सामूहिक प्रयास महत्वपूर्ण हैं।’
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) द्वारा वर्ष 2023 में किये गये एक सर्वेक्षण ने चिंताजनक निष्कर्षों का खुलासा किया, जिसमें बताया गया कि गुलाबी सुंडी के संक्रमण के कारण प्रारंभिक बोई गई कपास की फसल का 15 प्रतिशत तक हिस्सा नष्ट हो गया। इस सर्वेक्षण ने भी कपास की उपज पर कीट के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिए प्रभावी कीट प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है।
कुल मिलाकर, उत्तर राजस्थान और पंजाब के किसान एक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर और वैज्ञानिक ज्ञान का लाभ उठाकर गुलाबी सुंडी संक्रमण के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपनी कपास की उपज की रक्षा कर सकते हैं। इस कीट से प्रभावी ढंग से निपटने और क्षेत्र में कपास की खेती की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए किसानों को आवश्यक जानकारी और संसाधनों से लैस करना आवश्यक है।
इस संबंध में अधिक जानकारी और विशेषज्ञ सलाह के लिए, किसानों को स्थानीय कृषि विस्तार सेवाओं से परामर्श करने और नवीनतम अनुसंधान एवं सिफारिशों के बारे में अपडेट एवं जागरूक रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।