जयपुर। सुकून देने वाली ठंडी हवाएं उसके बाद बारिश इस सुहाने मौसम के बीच मानसून के सौंदर्य से सराबोर करने वाली मधुर धुनों के साथ श्रोताओं के दिलों में मिठास घोलने वाली पंचतन्त्री बेला वादन की प्रस्तुति। जवाहर कला केन्द्र की ओर से गुरुवार को मधुरम के अंतर्गत इस प्रस्तुति का आयोजन किया गया। विख्यात बेला वादक पं. रविशंकर भट्ट तैलंग ने स्वनिर्मित पंच तन्त्री बेला पर धुन छेड़ी। मानसून आधारित धुनों को सुन श्रोता मंत्र मुग्ध हुए।
ध्रुवपदाचार्य पद्मश्री पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग के सुपुत्र एवम् शिष्य पं. रविशंकर भट्ट तैलंग ने स्वरचित राग जन रंजनी के वादन से प्रस्तुति की शुरुआत की। राग कलावती और शिव रंजनी के संयोग से निर्मित यह राग पं. रविशंकर भट्ट ने बनायी। इसमें सरस्वती और गंगाधर शिव की आराधना के भावों का संयोजन है। जन रंजनी में उन्होंने आलाप, जोड़ और झाला प्रस्तुत किया। विलंबित रूपक और द्रुत तीन ताल की रचनाएं पेश की। इसके बाद राग मेघ एकताल व द्रुत तीन ताल में बंदिश से ख़ूब दाद बटोरी।
पं. रविशंकर ने पद्मश्री पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग द्वारा रचित बंदिश ‘गरज गरज गरजत घन’ बजाकर अपने गुरु को समर्पित की और उन्हें याद किया। मिश्र पीलू राग में दादरा की एक लोकप्रिय धुन ‘बरसन लागी सावन बूंदी आजा’ के वादन के साथ प्रस्तुति का समापन हुआ। ख़ास बात यह रही कि कलाकर ने बीच-बीच में अपने सुरीले कण्ठ के गायन से वादन को और रोचक बनाया। तबले पर दिनेश खींची ने संगत की। यह कार्यक्रम केन्द्र की ओर से मानसून को महोत्सव की तरह मनाने के लिए चलाई जा रही श्रृंखला जुलाई झंकार का हिस्सा रहा।
गौरतलब है कि हाल ही जयपुर के ध्रुवपदाचार्य पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग को पद्मश्री से नवाजा गया था। पं. लक्ष्मण भट्ट के स्वर्गवास के बाद उनके सुपुत्र और शिष्य पं. रवि भट्ट तैलंग ने पद्मश्री ग्रहण किया था। पं. रवि भट्ट ने अपने गुरु की प्रेरणा से वायलिन में 5वां तार जोड़कर पंचतन्त्री बेला बनायी है।