जयपुर। भारतीय हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट के समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक अग्रणी मंच शिल्पकारी, 5 और 6 अक्टूबर को जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम के फ्रंट लॉन्स में सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक दो दिवसीय एग्जीबिशन का आयोजन करने जा रहा है।
इस एग्जीबिशन में कुशल कारीगर और कलाकार एक मंच पर साथ आएंगे, जो कला और शिल्प के उत्कृष्ट, हस्तनिर्मित उत्पाद तैयार करते हैं, इनमें से कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और स्टेट अवॉर्ड विजेता शामिल हैं। ये कारीगर शिल्पकला की उस धरोहर का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पीढ़ियों से हमारी परंपरा का हिस्सा रही हैं। शिल्पकारी की संस्थापक, शिल्पी भार्गव ने यह जानकारी दी।
उन्होंने आगे बताया कि एग्जीबिशन में हैंडक्राफ्टेड टैक्सटाइल की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की जाएगी, जिसमें अजरख, इको प्रिंट और कलमकारी जैसे प्रसिद्ध हस्त प्रिंट और पेंट शामिल हैं। पारंपरिक एम्ब्राएडरी वर्क, जैसे कि एप्लिक और टांका, जरदोजी, चिकनकारी, कश्मीरी, फुलकारी, और कांथा भी प्रदर्शित किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, आशावाली ब्रोकेड, चंदेरी, तंगालिया, भुजोड़ी, जामदानी, हिमालयन हैंडलूम, कोसा सिल्क, माहेश्वरी, पटोला और इकत जैसी जटिल बुनाई वाले वस्त्रों के साथ- साथ बाटिक, बांधनी, शिबोरी और इटाजिम जैसी प्रिंटिंग तकनीकों का भी प्रदर्शन होगा।
विजिटर्स को एग्जीबिशन में विविध प्रकार के उत्पादों को देखने का अवसर मिलेगा। इसमें किलिम एक्सेसरीज, हाथ से बुने हुए केन प्रोडक्ट्स, सस्टेनेबल नारियल के शैल की मोमबत्तियां, सेरेमिक्स, चिकनकारी एक्सेसरीज, सबई ग्रास प्रोडक्ट्स, बच्चों के लिए हस्तनिर्मित शैक्षिक DIY किट्स, रंगीन ग्लास पर हैंड-पेंटेड क्राफ्ट, हस्तनिर्मित लेदर गुड्स, कच्छ के कारीगरों द्वारा प्रोडक्ट्स के साथ ही पारंपरिक मेटलवर्क शामिल होंगे।
शिल्पकारी का उद्देश्य एक ऐसे मंच का निर्माण करना है, जो पारंपरिक कारीगरों और आधुनिक उपभोक्ताओं को जोड़ते हुए उनके बीच दूरी को कम कर सके। इस पहल का उद्देश्य सस्टेनेबल फैशन प्रैक्टेसिस को बढ़ावा देना है, जिससे आर्टीजंस को सशक्त बनाया जा सके, फैशन उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके और ग्राहकों को उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले, टाइमलैस उत्पाद प्रदान किए जा सकें। निष्पक्ष व्यापार और नैतिक उत्पादन के माध्यम से संगठन का लक्ष्य एक सकारात्मक सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करना है, जो कारीगरों और समुदायों दोनों के विकास में योगदान दे।