जयपुर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस में धु्रव प्रसंग, वराह अवतार, नरसिंह अवतार आदि प्रसंगों का मार्मिक वाचन किया गया। सर्व श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी स्वाति भारती ने विज्ञान व अध्यात्म के समन्वय पर बल दिया। उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत महापुराण में ज्ञानं निःश्रेयसार्थाय पुरुषस्य आत्मदर्शनं और श्रीमदभगवत गीता में इसे ही अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वम् तत्व ज्ञानार्थ दर्शनं कहा गया।
अतः सभी शास्त्र-ग्रंथों के अनुसार अध्यात्म का वास्तविक अर्थ तत्व रूप से भगवान् का दर्शन करना है।
भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण व कूर्म पुराण में माँ ने इसी दिव्य दृष्टि द्वारा अर्जुन एवं हिमवान को अपने वास्तविक रूप का दर्शन करवाया। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे एक छोटी सी माइक्रोचिप में हजारों गीगाबाइट कंजं को इकट्ठा किया जाता है। ऐसे ही परमात्मा और उसका ऐश्वर्य हमारे इस शरीर में समाया है। जरुरत है तो बस अध्यात्म विज्ञानी सतगुरु के पास जाकर उसे कमबवकम करने की विधि जानने की। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से आज अनेकों श्रद्धालुओं ने उस परमात्मा का अपनी देह के भीतर ही दर्शन किया है और ये सब दिव्य चक्षु द्वारा ही संभव है।
कथा पंडाल में आयोजित होली महोत्सव की छटा देखते ही बनती थी। भक्तिपूर्ण रचनाओं द्वारा जनमानस ने प्रभु श्री कृष्ण के स्नेहिल रंगों से स्वयं को सराबोर किया। इस सरस आयोजन में भजनों का गायन परमायोगा भारती, पूजा भारती, हरात्म्जा भारती, आरती भारती के द्वारा किया गया। इन भजनों को ताल व लयबद्ध पंचरत्ना भारती, ज्योति भारती, रागिनी भारती व गुरुभाई आशीष ने किया। इस सात दिवसीय कथा द्वारा श्रद्धालुगण प्रभु की अनेक लीलाओं का आनंद लेते हुए अपने जीवन को लाभान्वित कर पाएँगे।