जयपुर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस सांस्कृतिक पुरुष आशुतोष महाराज ने विश्व में बंधुत्व और शांति की स्थापना के इस संस्थान का निर्माण किया है। प्रदत्त ब्रह्मज्ञान के प्रकाश तथा स्नेह व वात्सल्य की सरिता ने असंख्य मुरझाए हृदयों को नवजीवन दिया है। इन्हीं युगपुरुष के आशीर्वाद से उनकी शिष्या साध्वी स्वाति भारती ने कथा के पंचम दिवस भगवान की विभिन्न बाल लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को शास्त्र-सम्मत वैज्ञानिक आधार पर उजागर किया गया।
साध्वी स्वाति भारती ने बताया कि जिन नामों से हम प्रभु को पुकारते हैं वह तो गुणवाचक नाम हैं जैसे- घनश्याम, मुरलीमनोहर, गोपाल आदि। परन्तु विचारणीय बात यह है कि वह नाम जिसे पुकारने से द्रौपदी, नामदेव, अर्जुन जैसे भक्तों की रक्षा हुई वह कौन सा नाम है? श्री कृष्ण भगवद्गीता में उसे अव्यक्त अक्षर कहकर संबोधित करते हैं जिसे आदि स्पंदन या अजपा जाप भी कहा गया है| भी समझाते हैं- वाक्य ज्ञान अत्यंत निपुण भवपार न पावे कोई, निसि गृहमध्य दीप की बातन्ह तम निवृत्त न होई।
जिस प्रकार अंधेरे कमरे में बैठ कर प्रकाश का नाम लेने मात्र से अंधकार दूर नहीं होता उसी प्रकार जीवन से दुःख, चिंता, वैमनस्य, द्वेष आदि का अंधेरा भी बाहर के नामों को जपने से दूर नहीं होगा परमात्मा के प्रकाश को प्रकट करने वाले उस आदिनाम को एक पूर्ण गुरु की शरणागति में ही पाया जा सकता है| उस आदि नाम के साथ ही हम परमात्मा के अलौकिक दिव्य प्रकाश रूप का दर्शन भी अपने अंतर्घट में कर पाते हैं।
जिसे एक नेत्रहीन व्यक्ति भी सहजता से देख सकता है। इसी के तहत साध्वी जी ने संस्थान द्वारा चलाए जा रहे अंतर्दृष्टि प्रकल्प के विषय में विस्तार से बताया। गुरुदेव सर्वश्री आशुतोष महाराज द्वारा दीक्षित दिव्यांग एवं नेत्रहीन लोगों ने भी दिव्य नेत्र द्वारा अपने अंतर्हृदय में प्रभु के शाश्वत रूप का दर्शन किया और अपने जीवन को अक्षमता से सक्षमता की ओर अग्रसर कर लिया। साथ ही उन्हें स्व-रोजगार के साधन भी मुहैया कराए गए ताकि वे समाज में सर उठाकर जी सकें।
साध्वी स्वाति भारती जी ने सामाजिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि आज डॉक्टर्स,इंजीनियर,उच्च शिक्षित वैज्ञानिक भी कैसे पतन का परिचय दे रहे हैं| शिक्षा के साथ दीक्षा का समन्वय अति आवश्यक है। अतः सर्व श्री आशुतोष महाराज जी विज्ञान की ही तरह अध्यात्म के सैद्धांतिक पक्ष के साथ-साथ प्रायोगिक पक्ष पर भी बल देते हैं।
संस्थान के समाज सेवा के प्रति समर्पित भाव तथा इस के लिए किये जा रहे विभिन्न कार्यों का साक्षात्कार कर क्षेत्रवासी अत्यंत प्रभावित हैं। इस कथा की मार्मिकता व रोचकता से प्रभावित होकर अपार जनसमूह इन कथा प्रसंगों को श्रवण करने के लिए पधारे।