जयपुर। आचार्य महामुनीन्द्र शुकदेव महाराज की जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में श्री शुक संप्रदाय की आचार्य पीठ श्री सरस निकुंज में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के तीसरे दिन सोमवार को व्यासपीठ से वृंदावन की धीर समीर पीठ के महंत मदन मोहन दास जी महाराज ने शुकदेव प्राकट्य, भीष्म स्तुति, कुंती महारानी स्तुति और उत्तरा महारानी की स्तुति के प्रसंगों पर सारगर्भित प्रवचन किए। प्रारंभ में श्री शुक सम्प्रदाय पीठाधीश अलबेली माधुरी शरण जी महाराज ने व्यासपीठ और भागवतजी का पूजन किया।
कथा क्रम को विस्तार देते हुए मदन मोहन दास जी महाराज ने कहा कि भगवन नाम से ही जीव का कल्याण संभव है। सद्गुरु-आचार्यों द्वारा बताए गए भक्ति के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। मन-वचन-कर्म से प्रभु और जीव मात्र की सेवा से भगवान की शरणागति मिलती है। भगवन नाम इस संसार सागर से पार कराने वाली नाव है।
भीष्म-कुंती और उतरा महारानी की आर्त भाव से भगवान के स्तुति वंदन पर प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि भक्त की करण पुकार सुनकर भगवान नंगे पांव दौड़ आते हैं और भक्त के मान-सम्मान की रक्षा करते हैं। इस मौके पर शुकदेव मुनि महाराज के प्राकट्य की कथा का भी श्रवण कराया गया।
श्री सरस परिकर के प्रवक्ता प्रवीण बड़े भैया ने बताया कि मंगलवार को भगवान के अन्य अवतारों की कथा होगी। श्रीमद् भागवत कथा 26 अप्रेल तक प्रतिदिन अपराह्न तीन से शाम साढ़े छह बजे तक होगी। मुख्य जन्मोत्सव बधाई गायन 27 अप्रेल को दोपहर बारह से शाम छह बजे तक होगा।