जयपुर। 21 राज्यों के लिए वित्त वर्ष 25 के बजट का विश्लेषण करने पर उनकी वित्तीय स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। ये ऐसे राज्य हैं जो कुल मिलाकर देश के सकल घरेलू उत्पाद (वित्त वर्ष 25 में 326 लाख करोड़ रुपये) के 95 प्रतिशत से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन राज्यों के लिए औसत सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 11.2 प्रतिशत अनुमानित है, जो वित्त वर्ष 24 के संशोधित अनुमान में 11.8 प्रतिशत से कम है। इसमें अलग-अलग राज्यों के मामले में महत्वपूर्ण भिन्नता नजर आती है (मध्य प्रदेश के लिए 0.6 प्रतिशत से मिजोरम के लिए 22.1 प्रतिशत), जो भारत की बजटीय वृद्धि 10.5 प्रतिशत से अधिक है।
कुल प्राप्तियों में चार साल के निचले स्तर 10.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 43.4 लाख करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 24 संशोधित अनुमान में +16.7 प्रतिशत) होने की उम्मीद है, जिसमें राजस्व प्राप्तियों में 10.6 फीसदी की वृद्धि होगी। राजस्व प्राप्तियां दरअसल कुल प्राप्तियों का 99 प्रतिशत है।
यह वृद्धि मुख्य रूप से राज्यों के अपने राजस्व (कर और गैर-कर) में 15 फीसदी की मजबूत, हालांकि क्रमिक रूप से कम, वृद्धि के कारण हुई है, जो 25.8 लाख करोड़ रुपये है, जिसे केंद्र से कम हस्तांतरण और अनुदान द्वारा आंशिक रूप से ऑफसेट किया गया है। इन राज्यों के लिए करों संबंधी उछाल वित्त वर्ष 25 में 1.3x पर स्थिर रहने की उम्मीद है, जो केंद्र के 1.0x से आगे है।
तीन वर्षों की मजबूत वृद्धि के बाद, राज्यों द्वारा पूंजीगत खर्च वित्त वर्ष 25 में कम होने की उम्मीद है, जो कि मामूली 6.5 फीसदी बढ़कर 6.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा, जो कि वित्त वर्ष 24 में 39.3 फीसदी की मजबूत वृद्धि से बहुत कम है। जहां तक खर्च संबंधी गुणवत्ता की बात है, केपिटल टू रेवेन्यू का खर्च संबंधी अनुपात वित्त वर्ष 25 के लिए 20.7 प्रतिशत पर निर्धारित किया गया है। वित्त वर्ष 24 में 21.2 प्रतिशत की तुलना में इसमें गिरावट दर्ज की गई है।
पंजाब में यह अनुपात सबसे कम 6.2 प्रतिशत है, जबकि गुजरात 36.2 प्रतिशत के साथ सबसे आगे है। राजस्व व्यय को भी चार साल के निचले स्तर 8.9 प्रतिशत से बढ़ाकर 44.2 लाख करोड़ रुपये करने का बजट बनाया गया है। दूसरी ओर, प्रतिबद्ध व्यय (ब्याज भुगतान और पेंशन) की दर उच्च बनी हुई है, जो कुल राजस्व व्यय का लगभग 24 प्रतिशत है और राजस्व प्राप्तियों का लगभग एक चौथाई हिस्सा खर्च करता है। पंजाब, केरल, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु ने वित्त वर्ष 25 में अपनी राजस्व प्राप्तियों का 35 प्रतिशत से अधिक प्रतिबद्ध व्यय के लिए आवंटित किया है।
इन 21 राज्यों में से आठ ने 3 फीसदी से कम राजकोषीय घाटे का बजट बनाया है। इस मामले में सबसे आगे हैं- झारखंड (2 फीसदी), गुजरात (2.5 फीसदी) और महाराष्ट्र (2.6 फीसदी)। इस घाटे के लगभग 79 फीसदी हिस्से की फंडिंग बाजार ऋणों के माध्यम से होने की उम्मीद है, जिसमें सकल उधार 7 फीसदी बढ़कर 10.8 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। केंद्र से अधिक ऋण की बदौलत हाल के वर्षों में राज्यों की बाजार ऋणों पर निर्भरता कम हुई है।
इन 21 राज्यों के लिए वित्त वर्ष 22 में जीडीपी अनुपात में बकाया देनदारियों का अनुपात 29 प्रतिशत है, जो आकस्मिक देनदारियों (एसपीएसई को राज्यों की गारंटी) के हिसाब से बढ़कर 33 प्रतिशत हो सकता है। हमारे नमूने में, यूपी में कुल आकस्मिक देनदारियों का 19 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है, इसके बाद तेलंगाना में 15 फीसदी और आंध्र प्रदेश में 13 प्रतिशत है। राज्यों द्वारा कुल कर राजस्व में केवल 30 फीसदी का योगदान करने पर भी कुल सामान्य सरकारी व्यय में 60 फीसदी से अधिक का योगदान होने के कारण, उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार करना तेजी से महत्वपूर्ण हो गया है।
हमारे विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि राजकोषीय रूप से संकटग्रस्त राज्यों के लिए एक स्पष्ट राजकोषीय समेकन रोडमैप की आवश्यकता साफ नजर आती है। साथ ही, पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आकस्मिक देनदारियों में क्रमिक कमी, राजकोषीय विश्वसनीयता में सुधार और स्टेट डेवलपमेंट लोन (एसडीएल) के लिए जोखिम-आधारित मूल्य निर्धारण की भी जरूरत है।