March 15, 2025, 3:10 am
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मंच पर उठा हिंसा और बाल शोषण का मुद्दा, अंत में श्री कृष्ण बने कर्ण के सारथी

जयपुर। थ्री एम डॉट बैंड्स थिएटर फैमिली सोसाइटी, कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और जवाहर कला केंद्र, जयपुर, के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 13वां जयरंगम फेस्टिवल अपने परवान पर है। शनिवार को जयरंगम का चौथा दिन रहा। कृष्णायन में श्रीनिवास बसेट्टी के निर्देशन में नाटक ‘सकल जानिहे नाथ’ का मंचन किया गया। रंग संवाद में ‘आज की कहानियों में बचपन का प्रभाव’ विषय पर पूर्वा नरेश और श्रीनिवास बसेट्टी ने चर्चा किया। रंगायन में रुचि भार्गव नरूला निर्देशित नाटक ’30 डेज इन सितंबर’ खेला गया।

मध्यवर्ती में कुलविंदर बक्शी सिंह के निर्देशन में नाटक ‘कर्ण’ का मंचन हुआ। खुशबू ए राजस्थान फोटो प्रदर्शनी के सभी प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट प्रदान किए गए। नेहा व्यासो के निर्देशन में शुरू हुई दो दिवसीय कार्यशाला ऑवन योर बॉडी में कलाकारों ने रंगमंच में शारीरिक संयोजन के गुर सीखे।

‘सकल जानिहे नाथ’, स्पॉट लाइट सैगमेंट के तहत हुए तीसरा नाटक जिसने युवा निर्देशकों के प्रयोगात्मक रंगमंच का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। वसंत देव लिखित सुदामा के चावल कहानी का नाट्य रूपांतरण कर यह नाटक तैयार किया गया है। नाटक एक हास्यात्मक व्यंग्य है जिसमें लोक संगीत का बेहतर संयोजन देखने को मिलता है। कलाकार भूमिका माने ने बुंदेलखंडी और ब्रज भाषा के संवादों से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह भगवान कृष्ण और उनके बचपन के मित्र सुदामा के बारे में प्रसिद्ध पौराणिक कथा को फिर से प्रस्तुत करता है और समकालीन मानवीय स्थिति, मनुष्य के दोहरे मानदंडों और उसके जटिल दिमाग की कहानी का पता लगाता है। नाटक में विभिन्न तरह की हिंसा पर भी प्रकाश डाला गया है।

कहानियों पर बचपन का गहरा प्रभाव…

रंग संवाद में पूर्वा नरेश और श्रीनिवास बसेट्टी ने ‘आज की कहानियों में बचपन का प्रभाव’ विषय पर बात रखी। उन्होंने बताया कि बचपन में हुई घटनाएं कलाकार के जीवन को बहुत प्रभावित करती है। बचपन से ही कलाकार के जीवन की दिशा तय होती है। बताया गया कमोबेश हर निर्देशक की कहानी में उसके बचपन से जुड़े पात्र नजर आते हैं। पूर्वा नरेश ने बताया कि वे अपनी नानी से बहुत प्रभावित थी इसलिए उनके नाटक में उनकी नानी का जिक्र अधिकतर देखने को मिलता है, वहीं श्रीनिवास बसेट्टी ने बताया कि अभिनय को लेकर उनके पिता की सख्त हिदायत ने उनकी कला को मजबूती प्रदान की है।

बच्चों के शोषण पर उठाई आवाज…

’30 डेज इन सितंबर’ वरिष्ठ नाट्य निर्देशक रुचि भार्गव नरूला के निर्देशन में यह नाटक खेला गया। नाटक बचपन में हुए शारीरिक दुर्व्यवहार की शिकार हुई माला की मनोदशा का चित्रण है। दीपक माला से बेहद प्यार करता है और उससे शादी करना चाहता है। कोई मुझे छोड़े उससे पूर्व मैं उसे छोड़ दूंगी इस सोच के साथ माला कुछ समय के अंतराल के बाद हर रिश्ते से किनारा कर लेती है। वह दीपक के प्रणय प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं करती है।

बाद में सामने आता है कि बचपन में हुए शारीरिक दुर्व्यवहार के घाव माला के मन में आज भी हरे है और उसे हर पुरुष में अपने उस रिश्तेदार का चेहरा नजर आता है जिसने उसका शोषण किया था। अपनी मां की चुप्पी पर माला उससे हमेशा नाराज रहती है। अंत में मां मौन तोड़ती है और बताती है कि मैं अपने साथ हुए कुकर्म पर ही मुंह नहीं खोल पायी तो तुझे कैसे बचाती है। नाटक बच्चों के साथ हुई ऐसी घटनाओं पर से पर्दा उठाता है जिस पर समाज मौन जान पड़ता है। अंग्रेजी में हुए नाटक ने दर्शकों की खूब दाद बटोरी।

कृष्ण बने कर्ण के सारथी…

कर्ण कुलविंदर बक्शी सिंह के निर्देशन में खेला गया नाटक जिसने सर्द शाम में भी अपने प्रदर्शन से माहौल को ऊर्जा से भर दिया। नाटक में तीन महिला कलाकारों ने सभी किरदारों को निभाया। प्रस्तुति में भारतीय मार्शल आर्ट कहे जाने वाले कलरीपायट्टु, थांग टा, मयूरभंज छऊ का संयोजन भी देखने को मिला। महाभारत में वर्णित योद्धा कर्ण इस नाटक का मुख्य पात्र है। कर्ण की मृत्यु और महाभारत के समापन के बाद के दृश्य के साथ नाटक की शुरुआत होती है।

कर्ण की आत्मा जो अभी भी युद्ध क्षेत्र में मौजूद है। बीते अनुभव उसे घेरते हैं और वह खोज में जुटता है कि वह कौन है और कहां से आया है। कई समानांतर दृश्य इस दौरान चलते है और धीरे धीरे कर्ण की जीवन गाथा सामने आती है। अंत में श्री कृष्ण प्रकट होते है और कर्ण का सारथी बनने की बात कहकर उसके रथ को मंजिल तक पहुंचाते है।

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