जयपुर। दुनिया के सबसे बड़े साहित्यिक शो, सैमसंग गैलेक्सी टैब S9 सीरिज जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2024 के दूसरे दिन की शुरुआत होटल क्लार्क्स आमेर, जयपुर में, 2 फरवरी की सर्द सुबह में कई रोचक और उत्तेजक सत्रों के साथ हुई| फेस्टिवल का दूसरा दिन राजनीति, जीवनीकार, संगीत, स्टाइल, अध्यात्म और रचनात्मकता के नाम रहा| दिन की शुरुआत फिल स्कार्फ के दिल छू लेने संगीत के साथ हुई| सेक्सोफोन पर जैज़ और पारंपरिक राग की जुगलबंदी प्रस्तुत की| उनका साथ दिया प्रियांक कृष्णा और अनूप बनर्जी ने|
*कुछ प्रमुख सत्र रहे:*
सत्र ‘ट्रस्ट’ में पुलित्जर पुरस्कार विजेता लेखक हर्नान डियाज़ ने अपने उपन्यास और लेखकीय सफ़र पर चर्चा की| उन्होंने कहा, “मैं एक टेस्टीमोनियल लेखक नहीं हूं… मेरा लेखन मेरे निजी अनुभवों पर आधारित नहीं है| इसलिए पन्नों पर मुझे ढूँढना बेमानी है, लेकिन… मैं उस तरह का लेखक हूं जो सोचता है कि साहित्य अधिक साहित्य से बनता है, और मैं परंपरा का सामना करके लिखता हूं, उससे पीछे नहीं… मेरा ज्यादातर काम इन कठोर बातों से जुड़ा है और फिर उनमें किसी प्रकार का पुरातात्विक हस्तक्षेप उसे और प्रेरित करता है…”
सुबह के एक सत्र ‘यशोधरा एंड वीमेन ऑफ़ द संघ’ में श्याम सेल्वादुरै और वेनेसा आर. सेसों ने अपनी किताबों के माध्यम से इतिहास के सबसे अदृश्य व्यक्तित्व यशोधरा पर चर्चा की| बुद्ध की ख्याति अंधेरे में खड़ी यशोधरा की नींव पर बनती है, वो युवा पत्नी जिसे महल में तन्हा छोड़ दिया गया था| यशोधरा पर बात करते हुए अकादमिक वेनेसा ने साझा किया कि उन्होंने काफी बौद्ध साहित्य पढ़ा है, और लगभग किसी में भी यशोधरा पर कुछ नहीं मिलता| “जबकि ये एक ऐसा किरदार है, जिस पर बार-बार लिखा जाना चाहिए| ये कहानी एक जीवित कहानी है, जो 2000 साल के इतिहास में लगातार बदलती रही है|”
श्याम सेल्वादुरै ने लेखन पर बात करते हुए कहा, “लेखन शुरू करने से ज्यादा जरूरी होता है, उस पर टिके रहना| इसके लिए आपके कथ्य में रोचकता और जिज्ञासा होनी चाहिए| यशोधरा अपने आपमें सब कुछ हैं|” सत्र संचालन किया लेखिका और कवयित्री अरुंधति सुब्रमनियम ने|
एक दिलचस्प सत्र, ‘द मेमोइरिस्ट्स’ में वक्ताओं, मणिशंकर अय्यर और गुरुचरण दास ने संस्मरण लिखने की प्रक्रिया से अवगत कराया| दास ने अपने लेखन का रहस्य बताते हुए कहा, “मैं अपने बचपन के बारे में इतनी स्पष्टता से लिख पा रहा हूं, इसका कारण मेरी मां की डायरियां हैं।” अय्यर ने उन क्षणों को याद किया जिनका उन्होंने लिखते समय वास्तव में आनंद लिया था, “मैंने हमेशा लिखने का आनंद लिया है। मुझे कभी पता नहीं चला कि कैसे रुकना है।”
सत्र ‘द एलिफेंट मूव्स: इंडिया’स न्यू प्लेस इन द वर्ल्ड’ की शुरुआत अमिताभ कांत और अमित कपूर की नई किताब ‘एलिफेंट मूव्स’ के लोकार्पण से हुई, जिसका श्रोताओं ने ज़ोरदार तालियों से स्वागत किया| सत्र में पिछले कुछ वर्षों में भारत द्वारा अपने तकनीकी बुनियादी ढांचे और बेहतर शासन संरचनाओं सहित की गई महान प्रगति पर प्रकाश डाला गया, हालांकि यह भी स्वीकार किया गया कि जब सामाजिक विकास और रोजगार की बात आती है तो इसमें निजी क्षेत्र का भी महत्वपूर्ण योगदान है| देश के लिए अपनी आकांक्षाओं में, अमिताभ कांत ने कहा, “भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला का एक बहुत ही अभिन्न अंग बनने की आवश्यकता है”। अमित कपूर ने दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता पर पैनल के विचारों का समर्थन करते हुए कहा, “हममें से बहुत से लोग गलती करते हैं जब हम विकास या प्रगति को सिर्फ एक रेस मान लेते हैं| यह कोई रेस नहीं बल्कि एक मैराथन है|”
सत्र ‘द एस्केप आर्टिस्ट’ में जोनाथन फ्रीडलैंड ने श्रोताओं को बताया कि जब वह महज 19 साल के थे, तब उन्होंने इस कहानी के बारे में सुना था| उन्होंने एक डाक्यूमेंट्री देखी, जिसमें गवाहों की कहानी थी जिन्होंने नाज़ी जर्मनी में खुद यहूदियों के क़त्ल के प्रयास को देखा था| फिल्म में रुडोल्फ व्रबा की कहानी का भी जिक्र था, जो ऑस्च्वित्ज़ से भागने में कामयाब रहा था| सत्र में ऑस्च्वित्ज़ की भयानक यातनाओं और उन लोगों का भी जिक्र हुआ, जिन्होंने इसे भोगा था| रोजर कोहेन ने सवाल किया कि लोग यहूदियों की कहानियों को मानने से इंकार क्यों कर देते हैं? इस पर जोनाथन ने जवाब दिया कि “कभी-कभी हम सच जानते हैं, फैक्ट्स जानते हैं… लेकिन कोई चीज हमें उस पर यकीन करने से रोकती है|
एक अन्य सत्र ‘ट्वेल्व सीजर’ में, लोकप्रिय क्लासिकवादी मैरी बियर्ड ने रोमन साम्राज्य के बारे में बात की और हाल के दिनों में ‘व्हाट्स योर रोमन एम्पायर?’ जैसे टिकटॉक ट्रेंड्स के साथ ये फिर से चर्चा में कैसे आ गया है| बियर्ड ने अपनी रोचक किताब, ‘ट्वेल्व सीज़र्स’ के बारे में बात की। ऐतिहासिक किरदारों को चित्रित करने की प्रक्रिया पर उन्होंने कहा, “यह चित्रण का मुद्दा है… यह शासक को देखने का एक तरीका है, यह पूरी तरह से इस पर निर्भर नहीं है कि शासक दिखने में कैसा है|” उनके साथ सत्र में थे इतिहासकार पीटर फ्रैंकोपैन|
‘गुलज़ार साहब’ सत्र में यतीन्द्र मिश्र की नई किताब के माध्यम से गुलज़ार साहब के जीवन और समय पर चर्चा हुई| यह किताब पिछले दो दशकों में गुलज़ार साहब और यतीन्द्र मिश्र के संवाद पर आधारित है| इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है सत्या सरन ने| गुलज़ार साहब के प्रशंसकों से वेन्यु ठसाठस था, जो गुलज़ार साहब की एक झलक देखने को बेताब थे| गुलज़ार साहब ने भी उन्हें निराश न करते हुए, उनसे दिल खोलकर बात की|
‘आइडेंटिटी ट्रैप’ सत्र में लेखक यस्चा मोंक, बद्री नारायण और पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ संवाद में आज के राजनीतिक क्षेत्र में पहचान, विचारों और व्यक्तिवाद की अंतर्निहित प्रकृति पर चर्चा की। यस्चा मोंक ने जर्मनी में बिताए बचपन, श्वेत विशेषाधिकार, नस्ल अंतर और पश्चिम में नस्ल प्रोत्साहन पर अपना अनुभव साझा किया| पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने एक लेखक के रूप में अपने अनुभव और अपनी नई किताब, ‘लव जिहाद एंड अदर फिक्शन्स’ पर बात की| यह किताब गलत सूचना और अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश के सिद्धांतों से उत्पन्न भारत की उभरती दरारों का एक विस्तृत विवरण है| उन्होंने कहा, “…लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है जब उसका आधार साझा तथ्यों और साझा सच्चाइयों पर टिका होता है|” कवि और शिक्षाविद बद्री नारायण ने कहा कि दलितों की क्षमता को सही तरह से काम में लाया जाना चाहिए| उन्होंने भारत में सामाजिक द्वंद्वों पर काम करने वाले उच्च जाति के लेखक के रूप में आने वाली चुनौतियों पर भी बात की।
बेस्टसेलिंग इतिहासकार बेन मैकिनटायर की नई नॉनफिक्शन किताब, ‘कोल्डिट्ज़: प्रिज़नर्स ऑफ़ द कैसल’, इतिहास की सबसे कुख्यात जेल की सच्ची कहानी है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों के अधिकारियों के लिए युद्ध शिविर की जेल के रूप में कोल्डिट्ज़ को इस्तेमाल किया गया, जहाँ से उन्होंने बार-बार भागने का प्रयास किया था। बेन मैकिनटायर ने सत्र की शुरुआत यह कहकर की, “…कोल्डित्ज़ की वास्तविक कहानी वर्ग, नस्ल, कामुकता, मानसिक स्वास्थ्य और कई अन्य चीजों की कहानी है|” सत्र में, मैकिनटायर ने सम्मान के विषय पर प्रकाश डाला जो कहानी में प्रदर्शित किया गया था क्योंकि कोल्डिट्ज़ के जर्मन अधिकारियों ने भी जिनेवा कन्वेंशन के नियमों का सम्मान किया था, यह स्वीकार करते हुए कि कैदियों के पास कुछ अधिकार थे। मैकिनटायर, जो ज्यादातर युद्ध में जासूसी की भूमिका के बारे में लिखते हैं, ने यह कहकर सत्र समाप्त किया, “मुझे लगता है कि मैं इतिहास के महान पुरुषों या इतिहास के पुरुषों और महिलाओं के बजाय दुष्टों को पसंद करता हूं।”
‘स्टाइल एंड सब्सटेंस’ सत्र में फैशन डिजाइनर तरुण तहिलियानी ने दिलचस्प चर्चा की| पत्रकार आलिया अल्लाना के साथ सह-लेखन में लिखी फैशन डिजाइनर तरुण तहिलियानी की किताब ‘जर्नी टू इंडिया मॉडर्न’ भारतीय फैशन की विरासत को एक जीवंत टेपेस्ट्री के रूप में पेश करती है, जो अतीत और वर्तमान, परंपरा और आधुनिकता के तत्वों को एक साथ जोड़ती है। ताहिलियानी ने अपनी कला के लिए अपनाए गए रास्तों और आज की दुनिया में अपने लक्जरी डिजाइन स्टूडियो के महत्व का खुलासा किया। उन्होंने टिप्पणी की कि उनके अनुभव के अनुसार अगर एक कमरे में तीन महिलाएं एक जैसी पश्चिमी पोशाक पहनती हैं, तो इससे ‘क्राइसिस’ हो सकता है, लेकिन अगर तीन महिलाएं एक ही साड़ी पहनती हैं, तो अलग-अलग शारीरिक आकृतियों पर साड़ी पहनने के कारण यह पूरी तरह से अलग दिख सकती है। लेखिका शिवानी सिब्बल के साथ संवाद में, ताहिलियानी ने दुनिया भर में फैशन में अपने अन्वेषणों, समय और स्थान में कहानियों को मिलाने के अपने प्रयासों और उन सवालों के बारे में जानकारी साझा की जो वह अपने डिजाइनों के माध्यम से उठाना चाहते हैं। शिवानी ने कहा, “मुझे लगता है कि भारतीय महिलाओं ने भारतीय फैशन उद्योग के विकास का समर्थन किया है क्योंकि उन्होंने कभी भी पूरी तरह से पश्चिमी दृष्टिकोण नहीं अपनाया है…”
‘इंस्पिरेशन टू क्रिएशन’: अधिकांश चिंतकों को क्या चीज प्रेरणा देती है? उनके रचनात्मक प्रयासों को क्या प्रेरणा देता है? उनके सपने हकीकत में कैसे बदलते हैं? सपने देखने की आज़ादी सबसे बहुमूल्य आज़ादी है| सैमसंग गैलेक्सी टैब एस9 सीरीज के अपने नये मॉडल के सहज कौशल के माध्यम से सैमसंग डिजिटल कलात्मकता की शक्ति का पता लगाता है। कलाकारों, लेखकों, संगीतकारों, इतिहासकारों, गणितज्ञों और उद्यमियों के एक प्रेरक पैनल ने उन तरीकों पर चर्चा की, जिनसे लगातार बदलती इस दुनिया में कदमताल की जा सकती है।
“हम चाहते थे कि युवा लोग ज्यादा से ज्यादा हमारे साथ जुड़ें क्योंकि उनकी ऊर्जा माहौल को बदल देती है… और दूसरी बात यह है कि हम लोकतांत्रिक पहुंच चाहते थे|” → संजॉय के. रॉय
“रचनात्मक प्रक्रिया में व्यक्तिपरकता का क्या स्थान है? मैं खुद को मिटाकर दूसरी आवाजें जगाने में यकीन रखता हूं। मैं खुद को भाषा के प्रति समर्पित करने में विश्वास करता हूं… एक लेखक के रूप में किसी का काम भाषा की सुंदरता को खोदना और तलाशना है” → हर्नान डियाज़
फेस्टिवल के तीसरे दिन भी कई दिलचस्प सत्र और शानदार वक्ता शामिल होंगे, जिनमें प्रमुख हैं: पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित लेखक केय बर्ड, पुरस्कृत जीवनीकार निकोलस शेक्सपियर, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक मृदुला गर्ग और फेस्टिवल की को-डायरेक्टर और प्रसिद्ध लेखिका नमिता गोखले|