जयपुर। जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान मानद विश्वविद्यालय में आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा देश की एकमात्र आयुर्वेद पांडुलिपि नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित आयुर्वेद पांडुलिपि विज्ञान विभाग द्वारा आयुर्वेद से जुड़ी वर्षों पुरानी पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए 15 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।
29 मार्च तक राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ,संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर में चलने वाली इस राष्ट्रीय कार्यशाला में देश विदेश से पांडुलिपि के विद्वानों द्वारा 400 वर्ष तक कि पुरानी दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों के संरक्षण ओर ट्रांसक्रिप्शन की प्रक्रिया को राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में देश एवं विदेश से अध्यनरत छात्रों को इस राष्ट्रीय कार्यशाला के माध्यम से सिखाया जाएगा।
प्रो. बनवारी लाल गौड ने बताया आयुर्वेद पाण्डुलिपियों को मूल स्वरूप में ही संशोधन करके संरक्षण करने की आवश्यकता है जिससे आधुनिक आयुर्वेदज्ञों के लिये ऋषि-महर्षियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान यथावत रह सके। प्रो गौड़ ने अपने 50 वर्षों के पांडुलिपि के अनुभव को प्रतिभागियों से साझा किया और वर्तमान में सुश्रुत संहिता पर स्वयं द्वारा लिखी जा रही टीका के विषय में बताया। उन्होंने कहा संस्कृत व्याकरण के शिक्षण पर भी जोर दिया, बिना संस्कृत व्याकरण के पांडुलिपि का कार्य असंभव है, पांडुलिपि के शब्दों की त्रुटि को पकड़ने के लिए छंद, संधि, समास प्रत्यय तथा कारकों आदि का ज्ञान आवश्यक है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के कुलपति प्रोफेसर संजीव शर्मा ने कहा हजारों वर्षों पुरानी आयुर्वेद से जुड़ी दुर्लभ पांडुलिपियों और ग्रन्थों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है। हमारे विद्वानों द्वारा इन वर्षों पुरानी पांडुलिपियों में बेहतर स्वास्थ्य के लिए लिखी गई जानकारी से आयुर्वेद में रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा और इससे मिली जानकारी से आमजन को बहुत लाभ होगा।
उन्होंने आमजन से अपील करते हुए भी कहा कि जिनके पास भी आयुर्वेद से जुड़ी प्राचीन पांडुलिपि या कोई ग्रंथ है तो उसकी प्रति राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के पांडुलिपि विज्ञान विभाग में लेकर जरूर आए जिससे कि उसका संरक्षण किया जा सके और उस जानकारी से आमजन को स्वास्थ्य के क्षेत्र में लाभ हो।
प्रो. मीता कोटेचा जी ने लोककल्याण हेतु पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए इस प्रकार की कार्यशाला के आयोजन की अत्यधिक आवश्यकता है जिससे पाण्डुलिपियों में निहित गूढ़ ज्ञान आयुर्वेद चिकित्सकों के सामने आ सके।
आयुर्वेद पाण्डुलिपि विज्ञान विभाग के नोडल अधिकारी प्रो. असित कुमार पांजा ने 15 दिवसीय कार्यशाला के विषय में बताते हुए कहा इस कार्यशाला मे ओल्ड देवनागरी एवं देवनागरी लिपि मे लिखे हुये आयुर्वेद चिकित्सा के ज्ञान एवं शोध सम्बधित 6 पाण्डुलिपि का लिप्यान्तरन किया जा रहा है जो संपादन के पश्चात् आगे कि शोध् तथा मानव कल्याण के लिये प्रकाशित किया जायेगा।
कार्यशाला में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन् राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय,जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर बनवारीलाल गौड़, राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के कुलपति प्रोफेसर संजीव शर्मा, प्रो. मीता कोटेचा, प्रो. गोपेश मंगल, प्रो. निशा गुप्ता, वियेना से डॉ क्रिस्टिना, डॉ लक्ष्मीधर, डॉ अनिर्बन दास, डॉ मुकेश चिंचोलिकर, डॉ राकेश नारायण ओर देश विदेश से पांडुलिपि और आयुर्वेद के विद्वान विद्यार्थियों को प्राचीन और दुर्लभ पांडुलिपियों के विषय में विभिन्न सेशन के माध्यम से जानकारी देने के साथ विद्यार्थियों से चर्चा कर रहे हैं।