जयपुर। विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर बुधवार को जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में नाटक ‘चित्रलेखा’ का मंचन किया गया। नाटक पद्म भूषण अलंकृत साहित्यकार भगवती चरण वर्मा की कृति चित्रलेखा पर आधारित है। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक धीरज भटनागर ने नाट्य रूपांतरण और निर्देशन किया। अभिनय, संगीत और नृत्य को समाहित करने वाली इस प्रस्तुति ने दर्शकों की प्रशंसा हासिल की।
सभागार में प्रवेश करते ही दर्शक मंच पर मध्यकालीन भारत की छवि देखते हैं। महल और योगी की कुटिया को दर्शाने के लिए लकड़ी से सेट तैयार किया गया जिस पर बने चित्र दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। मंच पर अभिनेता आशुतोष राणा की आवाज में गूंजते शिव तांडव पर नृत्य के साथ नाटक की शुरुआत होती है जिसका भावानुवाद आलोक श्रीवास्तव ने किया है। आचार्य रत्नांबर के दो शिष्य श्वेतांक और विशालदेव अपने गुरु से पाप और पुण्य में अंतर पूछते हैं, इस पर आचार्य उन्हें संसार से ही ज्ञानार्जन की शिक्षा देते हैं। दोनों अपने-अपने रास्ते पर निकलते हैं, श्वेतांक पाटलिपुत्र के सामंत बीजगुप्त और विशालदेव योगी कुमारगिरि के पास पहुंच जाता है। यहीं से दोनों की शिक्षा शुरू होती है।
चित्रलेखा जो अपने नृत्य कौशल और सुंदरता के लिए पूरे पाटलिपुत्र में प्रसिद्ध है वह बीजगुप्त की प्रेयसी भी है। चित्रलेखा ही इस नाटक का केन्द्र भी है। कुमारगिरि वैराग्य को श्रेष्ठ मानते हैं तो बीज गुप्त और चित्रलेखा के लिए भोग विलास ही सब कुछ है। अनायास कुमारगिरि और चित्रलेखा की मुलाकात होती है। चित्रलेखा के ज्ञान से कुमारगिरि प्रभावित होते हैं।
चित्रलेखा कुमारगिरि से दीक्षा लेने वन में जाती है लेकिन परिस्थितिजन्य कारणों से दोनों फिर मुख्यधारा के जीवन में लौट आते हैं। इधर बीजगुप्त सन्यास धारण कर लेते हैं। अंतत: चित्रलेखा और कुमारगिरि को आत्मज्ञान होता है और दोनों फिर विरक्त की ओर अग्रसर होते हैं। श्वेतांक और विशालदेव दोनों को ज्ञात होता है कि ज्ञान तर्क की नहीं अनुभव की वस्तु है और पाप दृष्टिकोण की विषमता है जिसकी परिभाषा संभव नहीं है।
इन्होंने निभाई विभिन्न जिम्मेदारियां
सरगम भटनागर ने चित्रलेखा तो दीपक गुर्जर, प्रेमचंद बाकोलिया, अनमोल त्यागी, मुकेश पारीक, तनिष्का मुद्गल, वैभव दीक्षित, देवेश शर्मा, अथर्वा कुलश्रेष्ठ और वाणी पाण्डेय ने विभिन्न किरदार निभाए। दिनेश प्रधान तकनीकी सलाहकार रहे। प्रकाश संयोजन गगन मिश्रा ने संभाला। ग्वालियर घराने के सितार वादक पं. दीपांशु शर्मा ने संगीत दिया वहीं मुरैना की समीक्षा त्रिवेदी, ग्वालियर के अनुज व राजा बनर्जी ने गीतों को अपनी सुरीली आवाज में पिरोया। नृत्य निर्देशन जयपुर घराने की आद्या कालिया और प्रेरणा कुलश्रेष्ठ ने किया। रूप सज्जा असलम पठान ने की जबकि पोशाक नेहा चतुर्वेदी और करुणा भटनागर ने तैयार की।