जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में 45 दिवसीय आधुनिक रंगमंच एवं गवरी लोक नाट्य शैली आधारित कार्यशाला जारी है। इस विशेष कार्यक्रम में 40 प्रतिभागी सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, जो गवरी की अद्वितीय परंपराओं और रंगमंच की विविधताओं का अनुभव कर रहे हैं। यह कार्यशाला युवा कलाकारों को लोक नाट्य की समृद्ध परंपरा से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
गवरी नृत्य, जो मेवाड़ की एक प्राचीन परंपरा है, अपने आप में न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह समाज में पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता फैलाने का भी माध्यम है। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान ने बताया कि यह कार्यशाला प्रतिभागियों को प्रारंभिक स्तर से लेकर उन्नत तकनीकों तक का प्रशिक्षण देने के लिए डिज़ाइन की गई है। वे फिजिकल स्ट्रेंथ, एकाग्रता, कहानी, अभिनय, और वॉइस मॉड्यूलेशन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कार्यशाला में प्रतिभागियों को गवरी के गायन और नृत्य की मूल बातें सिखाई जा रही हैं, साथ ही मास्क निर्माण, पात्रों की पहचान और वेशभूषा पर भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
गवरी लोकनाट्य के प्रशिक्षक गणेश लाल भील ने बताया कि गवरी शिव और पार्वती की ऐतिहासिक कथाओं को प्रस्तुत करता है, जिसमें समाज में देवीत्व स्थापित करने का संदेश है। इस कार्यशाला का उद्देश्य न केवल प्रतिभागियों को कला का प्रशिक्षण देना है, बल्कि उन्हें सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक भी करना है। वे हरे पेड़ों की रक्षा और जीवों की सेवा के महत्व को भी समझेंगे। यह कार्यशाला गवरी जैसी विरासत को पुनर्जीवित करने और आने वाली पीढ़ियों को संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देने में सहायक होगी।